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जीवाभिगमसूत्रे
तेषामेको रुकमनुजानां तत्र - मातृपित्रादौ तीव्रः प्रेमबन्धनः समुत्पद्यते प्रेमबन्धो न जायते तत्राह - 'पयणु' इत्यादि, 'पयणुपेज्जबंधणाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो' प्रतनुप्रेमबन्धनाः- प्रेमबन्धनरहितास्ते मनुजगणाः प्रज्ञप्ताः कथिताः हे श्रमणायुष्मन् ! 'अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे२' अस्ति खलु भदन्त ! एकोरुक द्वीपे द्वीपे 'अरीति वा वेरिएति वा' अरिरिति वा, वैरिरिति वा, तत्रारिः - सामान्यशत्रुः, वैरिः - जातिनिबन्धनवैरोपेतः, यथा - सर्पनकुलयो:, 'घायएइ वा' घातक इति वा, घातको योऽन्येन घातयति 'बहएइ वा' बधक इति वा स्वयं हन्ता व्यथको वा चपेटादिना ताडकः 'पढिणीएइ वा' प्रत्यनीक इतिवा, प्रत्यनी - छिद्रान्वेषी कार्योपधातकः 'पच्चमित्तेइ वा' प्रत्यमित्रः यः पूर्वमित्रं भूत्वा पश्चादमित्रो जातः अमित्रसहायो वा इति प्रश्नः, भगवानाह - 'नो इणडे समट्ठे' पेमबंधणे समुप्पज्जइ' उन मनुष्यों को माता पिता आदिकों में तीव्र स्नेहानुबंध नहीं होता है क्योंकि 'पयणुपेज्जबंधणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो' हे श्रमण आयुष्मन् ! यहां के निवासी मनुष्य अल्प प्रेम बन्धन वाले कहे गये हैं 'अस्थि णं भंते ! एगोरुप दीवे २, दासाइ वा, पेसाइ वा, सिस्साइ वा, भयगाइ वा, भाइलगाइ वा, कम्मगरपुरिसाइ वा' हे भदन्त ! उस एगोरुक द्वीप में 'यह दास हैं - क्रय क्रीत नौकर हैं, यह प्रेष्य है- दूतादिक है, यह शिष्य है, यह भृतक हैनियत अवधि तक वेतन देकर रक्खा गया काम करने वाला मनुष्यहै, यह भागीदार है, यह कार्यकर पुरुष है 'ऐसा व्यवहार होता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-हे गौतम! 'जो इणट्ठे समट्टे' ऐसा अर्थ समर्थ नहीं है - अर्थात् वहां पर दास आदि का व्यवहार नहीं होता है
व्यवहार होय छे. परंतु 'णा चेव णं तेसिणं मणुयाणं विव्वे पेमबंधणे समुप्प ज्जइ' ते मनुष्याने भाता, पिता, विगेरेमां अत्यंत गाढ स्नेहानुमध होता नथी, प्रेम 'पयणुपेज्जबंधणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो' हे શ્રમણ આયુષ્મન્ ! ત્યાંના રહેવાવાળા મનુષ્યા અલ્પ પ્રેમખ ધનવાળા કહ્યા છે. 'अस्थि णं भंते ! एगोरुय दीवे दीवे दासाइवा, पेसाइवा, सिस्साइवा, भयगाइवा. भाइलगाइवा, कम्मगर पुरिसाइवा' हे भगवन् | ये मेअइड द्वीपमा 'मा हास छे. मरीहेो नाउर छे, या प्रेष्य छे. अर्थात् हूत विगेरे छे, या शिष्य छे, આ ભૃતક છે. અર્થાત્ નકકી કરેલ મુદત સુધી પગાર આપીને રાખવામાં આવેલ કામ કરનાર મનુષ્યને ભૃતક કહે છે. આ ભાગીદાર છે. આ કાર્યકર પુરૂષ છે. આવા अारना व्यवहार थाय छे ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रलुश्री हे छे 'जो इणट्टे समट्टे' हे गौतम ! मा अर्थ मरोर नथी. अर्थात् त्यां हास विगेरे व्यवहार
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જીવાભિગમસૂત્ર