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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ३९ एकोरुकस्थानामाहारादिकम्
रन्तीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम! 'पुढवी पुप्फफलाहारा मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो' पृथिवी पुष्पफलाहारास्ते मनुजगणाः प्रज्ञप्तः हे श्रमण ! हे आयुष्मन् ते पृथिवी पुष्पफलानि आहारा माहरन्तीत्यर्थः एवं भूता मनुजगणाः कथिता इति, 'ती सेणं भंते ! पुढवीए' तस्या आहार्थतया उपादीयमानायाः खलु पृथिव्या: ' के रिसए आसाए पण्णत्ते' कीदृशः - किमाकारक आस्वादः रसः प्रज्ञप्तः - कथित इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! ' से जहा णामए' स यथा नामकः 'गुलेवा' गुड इति वा इक्षुरसक्वाथो गुडः, 'खंण्डेइ वा' खण्डमिति वा खण्डं गुडविकारः, 'सक्कराइ वा, शर्करेति वा शर्कराकाशादि प्रभवा 'मच्छंडियाई वा ' मत्सण्डिकेति वा, मत्सण्डिका खण्डशर्करा मिसरीति भाषाप्रसिद्धाः, 'भिसकंदेइ वा' बिसकन्दमिति वा, बिसकन्दं - कमल- मूलम्, 'पप्पड मोएइ वा, पर्पटमोदक इति वा स च खाद्यविशेषः, 'पुप्फउत्तराइ वा' पुष्पोत्तरेति वा पुष्पविशेष निष्पन्ना हारा ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !' हे श्रमण आयुष्मन् गौतम ! वे एकोरुक द्वीप के मनुष्य पृथिवी पुष्प एवं फलों का आहार करते हैं 'ती से णं भंते! पुढवीए केरिसए आसाए पण्णत्ते हे भदन्त ! उस पृथिवी का कैसा आस्वाद रस - कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! से जहाणामए गुलेवा खंडेइ वा सक्कराइवा मच्छंडिया इवा भिस कंदेइ वा पप्पड मोयएइ वा पुष्प उत्तराह वा पउमुत्तराइवा अकोशियाइ विजयाइ वा, महा विजयाइ वा' हे गौतम ! जैसा गुड का स्वाद होता है, खांड का स्वाद होता है, शक्कर का स्वाद होता है मिसरी का स्वाद होता है कमल कन्द का स्वाद होता है पर्पट मोदक खाद्य विशेषका स्वाद होता है 'पुष्पोत्तर - पुष्प विशेष से बना शक्कर का जैसा स्वाद हो पद्मोत्तर - कमल विशेष से उत्पन्न शक्कर अकोशित
वा,
पण्णत्ता समणाउसो' हे श्रम आयुष्यमन् गौतम ! थे हैं।इड द्वीपना मनुष्यो पृथ्वी, पुष्प, मने इंसानो आहार १रे छे. 'तीसे णं भंते ! पुढवीए केरिसए आसाए पण्णत्ते' हे भगवन् से पृथ्वीने व मास्वाह - रस उद्यो छे ? या प्रश्नना उत्तरभां प्रलुश्री उहे छे ! 'गोयमा ! से जहा नामए गुलेइवा, खंडेइवा, सक्कराइवा, मच्छडियाइवा, भिसकंदेवा, पप्पडमोंयपइवा, पुप्प उत्तराइवा, पउमुतराइवा, अकोसियाइवा, विजयाइवा, महाविजयाइवा' हे गौतम! गोजनो वो स्वाह होय છે, ખાંડના જેવા સ્વાદ હેાય છે, સાકરનેા સ્વાદ જેવા હાય છે, મિસરીને! સ્વાદ જેવા ડાય છે. કમલકંદના સ્વાદ જેવા હાય છે, ૫૫ટ મેાદકના જેવા સ્વાદ होय छे' पुष्पोत्तर' पुष्प विशेषथी मनावेस सारनो स्वाह वो होय छे, पद्मोत्तर
જીવાભિગમસૂત્ર