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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३सू.६ रत्नप्रभापृथव्याः संस्थाननिरूपणम् मानो घनवातोऽपि झल्लरी संस्थित एव । 'तणुवाए वि' तनुवातोऽपि धनवात. स्याधस्ताद् विद्यमानस्तनुवातोऽपि झल्लरी संस्थित एवेति ? 'ओवासंतरे वि' अवकाशान्तरमपि रत्नममायामेव तनुवातादधो विद्यमानमवकाशान्तरमपि झल्लरीसंस्थितमित्यवगन्तव्यमिति, किंबहुना 'सव्वे विझल्लरी संठिए पन्नत्ते' सर्वेऽपि पंकबहुलादारभ्यावकाशान्तरपर्यन्तः प्रस्तावः झल्लरी संस्थितः प्रज्ञप्तः । 'सक्करप्पमाणं भंते ! शर्कराप्रभा खलु भदन्त ! 'पुढवी' पृथिवी 'किं संठिया पन्नत्ता' कि संस्थिता कीदृश संस्थानयुक्ता प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'झल्लरी संठिया पन्नत्ता' झल्लरी संस्थिता प्रज्ञप्ता विस्तीर्ण वलयाकारत्वादिति । शर्कराप्रभायाः संस्थान प्रदर्य शर्करापमाया अधोकहा गया है । 'घणवाए वि' घनोदधि के अधोभाग में वर्तमान घनवात भी इसी प्रकार के आकार वाला कहा गया है। 'तणुवाए वि' घनवात के अधोभाग में वर्तमान तनुवात भी झल्लरी के जैसे ही आकार वाला कहा गया है। 'ओवासंतरे वि' तनुवात वलय के अधो. भाग में वर्तमान अवकाशान्तर भी झल्लरी के जैसे ही आकार वाला कहा गया है । 'सव्वे वि झल्लरी संठिए पन्नत्ते' इस विषय में अधिक क्या कहा जावे पंकबहुल काण्ड से लेकर अवकाशान्तर पर्यन्त सब ही झल्लरी के जैसे ही आकार वाले कहे गए हैं ।
'सकरप्पभाणं भंते ! पुढवी' हे भदन्त ! शर्कराप्रभा नाम की जो पृथिवी है वह 'किं संठिया' कैसे आकार वाली हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! झल्लरी संठिया पनत्ता' हे गौतम ! शर्करा प्रभा नाम की जो पृथिवी है वह भी झल्लरी के जैसे ही आकार वाली है। क्यों प्रमाणे सरना भा२ २१॥ मारने से छे. 'तणुवाए वि' धनपातनी નીચેના ભાગમાં રહેલ જે તનુવાત છે, તે પણ ઝાલરના આકાર જે કહેલ छ, ‘ओवासतरे वि' तनुपात १सयन नीयन। मामा २७८ अशान्तर पण सरना २४ २४२ वाणु वामां मावेस छे. 'सव्वे वि झल्लरी संठिए पन्नते' मा सयमा विशेष शुं ४उपाय ? ५gesisथी सन અવકાશાન્તર પર્યન્ત બધાજ કાંડે ઝાલરના આકાર જેવા આકારવાળા કહ્યા છે.
'सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवी' है सावन् शरामभानामनी २ पृथ्वी छ, त कि संठिया' ! मारवाणी छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रा डे छ है 'गोयमा ! झल्लरी संठिया पन्नत्ता' हे गौतम ! शराला पृथ्वी पर
જીવાભિગમસૂત્ર