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जीवाभिगमसूत्रे
काण्डम् ४, मसारगल्लकाण्डम् ५, हंसगर्भकाण्डम् ६, पुलककाण्डम् ७, सौगन्धिककाण्डम् ८, ज्योतीरसकाण्डम् ९, अञ्जनकाण्डम् १०, अञ्जनपुलककाण्डम् ११, रजतकाण्डम् १२, जातरूपकाण्डम् १३, अंककाण्डम् १४, स्फटिककाण्डम् १५, एवं रिष्टकाण्ड चेति सर्वाणि षोडशापि काण्डानि झल्लरी संस्थान संस्थितान्येवेति ज्ञातव्यम् | 'एवं पंकबहुले वि' एवं खरकाण्डादिवदेव रत्नप्रभा पृथिव्याः यद् द्वितीयं पंकबहुलं काण्ड तदपि झल्लरी संस्थानसंस्थितमिति ज्ञातव्यम् | 'एवं आवबहुले वि' एवमब्बहुलमपि पंकबहुलकाण्डवदेव रत्नप्रभा पृथिव्यां विद्यमानमकाण्डं तृतीयमपि झल्लरी संस्थान संस्थितमिति ज्ञातव्यम् । 'घणोदst fa' घणोदधिरपि रत्नप्रभाया अधोभागे वर्तमानो घणोदधिरपि झल्लरी संस्थानसंस्थित एवेति ज्ञातव्यम् | 'घणवाए वि' घनवातोऽपि घणोदधेरधस्ताद्विद्ययावत् शब्द से वज्रकाण्ड २, वैडूर्यकाण्ड ३, लोहिताक्षकाण्ड ४, मसारगल्लकाण्ड५, हंसगर्भकाण्ड६, पुलाककाण्ड ७, सौगन्धिककाण्ड ८, ज्योतिरस काण्ड ९, अञ्जन काण्ड १०, अञ्जन पुलाक ११, रजत काण्ड१२, जातरूप काण्ड १३, अङ्क काण्ड १४, स्फटिककाण्ड १५, और रिष्ट काण्ड १६, ये सब सोलह ही काण्ड झल्लरी के जैसे आकार वाले कहे गये हैं ।
'एवं पंकबहुले वि' खरकाण्ड आदि की तरह ही रत्नप्रभा पृथिवी में जो दूसरा बहुल काण्ड है वह भी झल्लरी के जैसे ही आकार वाला ही कहा गया है 'एवं आवबहुले वि' इसी प्रकार से रत्नप्रभा पृथिवी में जो अब्बहुल भाग है वह भी झल्लरी के जैसे आकार वाला कहा गया है 'घणोदधि वि' रत्नप्रभा पृथिवी के अधोभाग में वर्त्तमान घनोदधि भी झल्लरी के जैसे ही आकार वाला
વજ્રાકાંડ ૨, વૈઙૂ"કાંડ ૩, લેાહિતાક્ષકાંડ ૪, મસારગલ્લકાંડ ५, હું સગભ કાંડ ६, बुझाउअंड ७, सौग धिांडे ८, ल्योतिरसांड, अॅक्नकांडे १०, अभन પુલાકકાંડ ૧૧, રજતકાંડ ૧૨, જાતરૂપકાંડ ૧૩, અંકકાંડ ૧૪, સ્ફટિકકાંડ ૧૫, અને ષ્ટિકાંડ ૧૬, આ બધાજ સાળે કાંડા ઝાલરના આકાર જેવા આકાર વાળાજ કહેલા છે.
'एव पंकबहुले वि' रांड विगेरेना अथन प्रभा ४ रत्नप्रभा पृथ्वीभां ખીજો જે પ'કબહુલકાંડ છે, તે પણ ઝાલરના જેવા આકારવાળેાજ કહેવામાં आवे छे. 'एवं अब्बहुले वि' न प्रमाणे रत्नप्रभा पृथ्वीभां मण्डुसांड छे ते पशु वरना भार वा आगरवाणी हे छे. 'घणोदहि वि' रत्न પ્રભા પૃથ્વીની નીચેના ભાગમાં રહેલ ઘનેાધિ પણ ઝાલરના જેવા આકાર वाणोन उडेल छे. 'घणवाएवि' धनोऽधिनी नाथेना लागमां धनवातयाशु मे
જીવાભિગમસૂત્ર