SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 534
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२२ जीवाभिगमसूत्रे स्वभावत एव परिणाम प्राप्तेन मद्यविधिना पूर्वोक्त रसविधिना उपपेताः युक्ताः पुनश्च 'फलेहिं पुण्णा' फलैः पूर्णाः संभृताः सन्तः 'विसटुंति' दलिधातुः चूर्णीकरणे विकासे च तत्र वर्तमानाबलेः 'दलिवल्योर्विसट्ठवंफो 'प्राकृत व्याकरणे८-४-१७६' इति सूत्रेण दलेर्धातोः विसदादेशः अतो विसटति' इत्यस्य दलन्ति -विकसन्ती-त्यर्थों वोध्यः एवमग्रेऽपि । 'कुसविकुस विशुद्ध रुक्खमूला जाव चिटुंति' कुसविकुस विशुद्धवृक्षमूला : यावच्छब्देन-मूलकन्दादिमन्तः प्रसाद नीया अभिरूपा प्रतिरूपास्तिष्ठन्तीति । अथ द्वितीयकल्पवृक्षजातिस्वरूपमाख्यातुमाह-'एगोरुयदीवे' इत्यादि, 'एगोरूव दीवे तत्थर, एकोलकद्वीपे खलु तत्र तत्र देशे 'बहवे भिगंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो' बहवो भूताङ्गा नाम द्रुमगणा:-कल्पवृक्षाः प्रज्ञप्ताकथिताः हे श्रमण आयुष्मन् ! तत्र भृतं भरणं पूरणमित्यर्थः तत्र भरणे बहुत और विविध-नाना प्रकारक जाति भेद को लेकर अपने स्वभाव से ही ये वहां अनादि काल से रहते है ये लोकपाल आदि के लगाये हुए नहीं होते हैं। वे स्वाभाविक रूप से परिणत ऐसी मद्य विधि से युक्त होते हैं। वे 'फलेहिं पुण्णा' फलों से लदे हुए 'विसदृति' विकसित होते रहते हैं। और 'कुसविकुस विसुद्धरुक्खमूला' इन वृक्षों के मूल दर्भ आदि घास से विशुद्ध-रहित होते हैं ऐसे ये मत्तांग द्रुम. गण प्रासादीय दर्शनीय अभिरूप और प्रतिरूप होते हुए वहां रहते हैं । यह मत्तांग नाम के प्रथम कल्पवृक्ष का वर्णन हुआ ॥१॥ द्वितीय जाति के कल्पवृक्ष का स्वरूप इस प्रकार से है 'एगोरुय दीवे तत्थ २, बहवे मिंगंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता०' हे श्रमण आयुष्मन् ! उस एगोरुक नाम के द्वीप में जगह २, अनेक भृत्ताङ्ग नाम के कल्पवृक्ष हैं ये कल्पवृक्ष वहाँ के निवासी मनुष्यों को अनेक प्रकार विहीए उववेया' भने व्यतिना था । विविध भने २॥ नति ભેદને લઈને પિતના સ્વભાવથી જ તે અનાદિ કાળથી ત્યાં રહે છે. આ લેકપાલે. વિગેરેએ લગાવેલ હોતા નથી. તેમાં સ્વાભાવિક રૂપથી પરિણત એવી મધ विवि (प्रभासनता)थी युत हाय छे. मने 'फलेहिं पुग्णा' जोथी सहायता 'विसति' विसित थता २हेछ. अने 'कुसविकुसविसुद्धरुवखमूला' या वृक्षान। મૂળ દર્ભ વિગેરે ઘાસથી વિશુદ્ધ રહિત હોય છે. એવા આ મત્તાંગ દ્રમગણ પ્રાસાદીય, દર્શનીય, અભિરૂપ, અને પ્રતિરૂપ હોય છે. અને ત્યાં રહે છે. આ મત્તાંગ નામના પહેલા કલપ વૃક્ષનું વર્ણન થયું. ૧ છે भीलतना ४८५वृक्षन २१३५ मतावाम मावे छे. 'एगोरुय दीवे तत्थ तत्थ भिगंगयाणाम दुमगणा पण्णत्ता' है श्रम आयुश्मन! त જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy