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________________ ५१४ जीवाभिगम • 'एगोरुयदी वेणं तत्थ २ बहवे' एकोरुकद्वीपे खलु तत्र २ बहवः 'तिलयालवया नग्गोधा जाव रायरुक्खा मंदिरुक्खा' तिलकालवकान्यग्रोधा - यावद् राजवृक्षाः तिलकादयो नन्दिवृक्षान्ता वृक्षविशेषाः सन्ति कथं भूतास्ते वृक्षास्तिलकादयस्तत्राह - 'कु' इत्यादि, 'कुसविकुस - वि० जाव चिद्वंति' कुसविकुस विशुद्ध वृक्षमूला मूलवन्तः कन्दवन्तो यावद् बीजवन्तः पत्रैः पुष्पैराच्छन्न प्रतिच्छन्नाः श्रियाऽतीवातीव शोभमानास्तिष्ठन्तीति । 'एगोरुयदी वेणं तस्थ २ बहूओ पउमलयाओ जाव सामलयाओ' एकोरुकद्वीपे खलु तत्र २ वहव्योऽनेकप्रकाराः पद्मलता यावत् नागलता अशोकलताः चम्पकलताः चूतलताः वनलताः वासन्तिकालताः अतिमुक्तकलताः कुन्दलता : श्यामलताः सन्ति ता पद्मलताद्या: ' णिच्चं कुसुमियाओ' नित्यं कुसुमिता : मयूरिताः स्तवकिताः पल्लविता: गुल्मिताः पुष्पमालावनद्धाः 'एवं लया वण्णओ जहा उनवाईए जाव - पडिख्वाओ' एवम् उक्तप्रकारेण लतावर्णनं कर्तव्यम् यथोपपातिक सूत्रे कृतम् ता लताः प्रासादीयाः दर्शनीयाः अधिक रूप में सुहायने बने रहते हैं । 'एगोरुय दीवे णं तत्थ बहूओ पउमलयाओ, जाव सामलयाओ णिच्चं कुसुमियाओं' उस एगोरुक नाम द्वीप में अनेक प्रकार की अनेक लताएं भी हैं- जैसे- पद्मलताएं यावत् यहां यावत् शब्द से नाग लताओं का अशोकलताएं तथा चम्पकलता आमलता वनलता वासन्तीलता अतिमुक्तकलता कुन्दलता इयामलताइनलताओं का ग्रहण हुआ है । ये लताएं नित्य कुसुमित स्तबकित, पल्लवित, गुल्मित और पुष्पमालाओं से व्याप्त रहा करती हैं । ' एवं लतावन्नओ जहा उवाईए जाव पडिरूवाओ' इस प्रकार से यहां लताओं का वर्णन कर लेना चाहिये जैसा कि औपपातिक सूत्र में इन लताओं का वर्णन किया गया है। ये लताएं प्रासादीय हैं, दर्शनीय हैं अभिरूप मन्या रहे छे. 'एगोरुयदीवेणं तत्थ बहूओ पउमलयाओ, जान सामलयाजो णिच्छ' कुसुमियाओ' ते ३ नामना द्वीपमा भने प्रारनी भने सताओ વેલે પણ હેાય છે. જેમકે પદ્મલતા, યાવત્ અહિયાં યાવત્ શબ્દથી નાગ बताओ, अशोऽसताओ, सभ्यताओ, भाभवताओ, वनसताओ, वासन्ती લતાએ, અતિમુક્તલતાએ, કુંદલતા, અને શ્યામલતાએ આ ખધી લતા ग्रहण १२राई छे. या अधी बताओ नित्य सुमित, स्तमस्ति, पदसवित, शुस्मित, थाने पुष्पोथी सहा व्याप्त रहे छे. 'एवं लता दण्णओ जहा उववाइए जाव परूिवाओ' आ रीते महियां सतायोनुं वर्शन सम से भोपपाति સૂત્રમાં જે પ્રમાણે આ લતાઓનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. તે પ્રમાણે સમજી લેવું આ ખધી લતાએ પ્રાસાદીય છે, દર્શનીય છે, અભિરૂપ અને જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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