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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ३३ सभेद मनुष्यस्वरूपनिरूपणम्
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सम्प्रति- गर्भध्युत्कान्तिक मनुष्यप्रतिपादनार्थमाह-' से किं तं इत्यादि, 'से किं तं गब्भवक्कंतिय मणुस्सा' अथ के ते गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याः गर्भव्यु. त्क्रान्तिकमनुष्याणां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गब्भवक्कंतिय' इत्यादि, 'गब्भववकंतियमणुस्सा तिविहा पन्नता' गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्या स्त्रिविधा स्त्रिप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः - कथिताः, तत्र त्रैविध्यं दर्शयति- 'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा - 'कम्मभूमिगा अकम्मभूमिगा अंतरदीवगा' कर्मभूमिकाः कर्मभूमिषु भरतादिपञ्चदशसु कर्मभूमिषु जायमानाः कर्मभूमिकाः, एवमकर्म भूमिषु - हैमवतादि त्रिंशद्विधा भोगभूमिषु जाता अकर्म भूमिकाः, अन्ताद्वीपकाः लवणसमुद्रमध्येऽन्तरेऽन्तरे द्वीपा इति अन्तरद्वीपाः, अन्तरद्वीपेषु षट्पञ्चाशत्संख्यकेषु असंज्ञी मिध्यादृष्टि अज्ञानी और सभी पांचों पर्याप्तियों से अपहोते हैं वे अन्तर्मुहूर्त्त की आयु में ही काल कर जाते हैं। 'सेत्त' संमुच्छिम मणुस्सा' ये समूर्छिम मनुष्य है ।
गर्भज मनुष्यों का विवेचन -' से किं तं गन्भवक्कंतिय मणुस्सा' हे भदन्त ! गर्भज मनुष्यों के कितने भेद हैं ? उत्तर में प्रभुश्री हैंहते हैंगौतम | भवतियमणुस्सा तिविहा पण्णत्ता' गर्भव्युत्क्रान्तिक गर्भजमनुष्यों के तीन भेद हैं । 'तं जहा' वे भेद इस प्रकार से हैं- 'कम्मभूमिगा, अकम्मभूमिगा, अंतरदीवगा' कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तरद्वीपक इनमें जो कर्मभूमियों में भरत ऐरवतादि पन्द्रह क्षेत्रों मेंउत्पन्न होते हैं वे कर्मभूमिक हैं, है भवत आदि तीस अकर्मभूमियों में जो उत्पन्न होते हैं - वे अकर्म भूमि कहलाते हैं। दो लाख योजन के विस्तारवाला लवणसमुद्र के भीतर भीतर जो द्वीप हैं, वे अन्तर द्वीप हैंइन छपान अन्तरद्वीपों में जो उत्पन्न होते है वे अन्तर द्वीपक मनुष्य है।
અને બધી પાંચે પર્યામિયાથી અપર્યાપ્ત હોય છે. આ અંતર્મુહૂર્તના આયુષ્યમાંજ डास ४२ छे. 'से त ं संमुच्छिममणुस्सा' या संभूर्च्छिम मनुष्योनुं निइया धुं छे.
हुवे गर्भक मनुष्योनुं निइयाशु वामां आवे छे. 'से किं' त' गन्भ वक्कंतिय मणुस्सा' हे भगवन् गर्भ मनुष्योना डेटा लेह उद्या छे ? मा प्रश्नमा उत्तरमा प्रलुश्री गौतमस्वामीने उडे छेडे हे गौतम! 'गन्भवक्क 'तिय मस्सा तिविहा पण्णत्ता' गर्ल' व्युत्यांत-गर्ल' मनुष्योना ऋण लेहो उद्या छे, 'त' जहा' ते ले! या प्रमाणे छे 'कम्मभूमिगा, अकम्मभूमिगा, अंतरदीबगा' ક ભૂમિક અકર્મભૂમિક, અને અંતરદ્વીપજ, આમાં જે કર્મભૂમિયામાં એટલે કે ભરત, એરવત, વિગેરે પંદર ક્ષેત્રામાં ઉત્પન્ન થાય છે. તેઓ કભૂમિક કહેવાય છે. બે લાખ ચેાજનના વિસ્તારવ ળા લવણ સમુદ્રની અંદર અંદર જે દ્વીપ છે, તે અંતરદ્વીપ છે. આ છપ્પન અંતરદ્વીપામાં જે ઉત્પન્ન થાય છે, અંતરદ્વીપક મનુષ્યેા છે,
તે
જીવાભિગમસૂત્ર