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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ. ३सू. ३१ अविशुद्ध-विशुद्धलेश्यानगारनि० ४७७ 'अविशुद्ध लेस्सं देवं देवि अणगारं 'विशुद्ध ले श्यं देवं देवीमनगारम् 'जाणइ पास ' जानाति - ज्ञानविषयीकरोति, पश्यति दर्शनविषयी करोति, इति प्रश्नः, भगवा नाह - 'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम! 'नो इणट्टे समट्टे' नायमर्थ अविशुद्ध लेश्यावच्चेन यथाऽवस्थितवस्तुपरिच्छेदस्याशक्यत्वादिति ३ । 'अविशुद्धले से अणगारे ' अविशुद्धलेश्य :- कृष्णा दिलेश्या सहितोऽनगारः 'समोहरणं अप्पाणेणं' समवहतेन वेदनादि समुद्घातगतेनात्नना 'विशुद्धलेस्सं देवं देवी अणगारं ' विशुद्धलेश्यं देवं देवीमनगरम् 'जाणइ पासई' जानाति सामान्यतः, पश्यति विशेषरूपेणेति प्रश्नः, भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम! ! 'नो इण समट्टे' नायमर्थः समर्थः अविशुद्ध लेश्यतया यथावस्थित वस्तुपरिच्छेदासंभवादिति ४ 'अविशुद्धले से णं भंते ! अणगारे अविशुद्ध लेश्यः खलु भदन्त ! अनगारः - साधुः 'समोहया समोहरणं अप्पाणेणं' समवहता समवहते नाऽऽत्मना तो क्या वह स्वयं के द्वारा 'अविसुद्ध लेस्सं देवं देवि अणगारं' अविशुद्ध लेश्या वाले देव को या देवी को या अनगार को क्या जानता है और देखता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'जो इणट्ठे समट्ठे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है इसका वहरण लेश्या की अविशुद्धता में यथावस्थित वस्तु परिच्छेदक ज्ञान नहीं होता है' अविसुद्ध लेस्से अण गारे समोहरणं अप्पाणेण विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणइ पासई' हे भदन्त ! जो अनगार अविशुद्ध लेश्या वाला है और वेदनादि समुद् घातगत रहा हुवा है तो क्या वह स्वयं के द्वारा विशुद्ध लेश्या वाले देव को या देवी को या अनगार को क्या जानता देखता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- हे गौतम! 'नो इणट्ठे समट्ठे' यह अर्थ समर्थित नहीं तो शुं ते स्वयं पोतानाथी 'अविसुद्धलेश्सं देवं देवि अणगार जाणइ पासइ' અવિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા દેવને અથવા દેવીને અથવા અણુગારને શું જાણે છે ? અને દેખે છે આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે ળો ટ્રે समट्टे' हे गौतम! या अर्थ अशेयर नथी, तेनुं अर सेश्यानी अविशुद्धिमां यथावस्थित वस्तु परिच्छे६४ ज्ञान होवु लेहोते होतुं नथी. 'अविसुद्धले से अणगारे समोहरण अप्पानेणं विशुद्धलेश्सं देवं अणगार जाणइ पासइ' हे लगवन् જે અણગાર અવિશુદ્ધ લેયાવાળો હાય અને વેદના વિગેરે સમુદ્ધાત યુકત હાય તે શું તે સ્વયં પાતેજ વિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા દેવને અથવા દેવીને કે અણુગારને જાણે છે ? કે દેખે છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હે ગૌતમ ! 'नो इणट्रे समद्रे' या अर्थ अरोमर नथी, तेनु र उपर हेवामां भावी - જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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