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________________ ३१४ जीवाभिगमसूत्रे 'सुवनागराणि वा' सुवर्णाकरा इति वा 'हिरण्णागराणि वा' हिरण्याकरा इति वा, अग्निस्थानानि निरूप्य अग्निस्वरूपं निरूपयति-'कुंभारागणीइ वा' कुम्भकाराग्निरिति वा कुम्भकारस्य भाण्डपाकाग्निवी 'मुसागणीइ वा' मूषाग्निरिति वा 'मूषा' इति धातुगालनपात्रं तद्गताग्निर्वा 'इट्ठयागणीइ वा' इष्टकाग्निरिति वाइष्टकापाकाग्निर्वा 'कवेल्लुयागणीइ वा' कवेल्लुकाग्निरिति वा-कवेल्लुकपाकाग्निर्वा 'लोहांबरीसेइ वा' लोहकाराम्बरीष इति वा अम्बरीषः कोष्ठक: ‘भट्टी' इति प्रसिद्धः 'जंतवाडचुल्लीइवा' यन्त्र पाटक चुल्ही इति वा यन्त्रम्-इक्षुपीडनयन्त्रम् तत्प्रधानः पाटकः यत्र चुल्ही यत्र इक्षुरसः पच्यते 'गोलियालिंछागणीइ वा' गौण्डिकालिंछाग्निरितिवा- गुडपाक स्थानाग्निर्वा 'सोडियालिंछागणीइ वा' शौण्डिकलिंछाग्निरिति वा, मद्यपाकस्थानाग्नि वा 'लिंडिया लिंछागणीइ वा' लिण्डिकालिंछाग्निरिति वा अजापुरिषस्थानगताग्नि वा 'णडागणीइ वा नडाग्निरिति वा नड:-अन्तर्विवर नडवंशः तस्याग्नि वा 'तिलागणीइ वा तिलाग्नि सोने को गलाने के भट्टे, अग्नि के स्थानों को कह कर अब अग्नि का स्वरूप कहते हैं 'कुभागाराणिइवा 'कुंभ-वर्तन-के भट्टे की अग्नि 'मुसागणी इवा' 'मूषा'-धातु गलाने का पात्र उसकी अग्नि 'इटयागणी. इवा' ईटों को पकाने वाले भट्टे की अग्नि' 'कवेल्लुया गणीइवा' 'कबे. ल्लु-खपरा को पकाने के आवा की अग्नि 'लोहांबरीसेइवा' लोहे को गलाने वाले लुहार के भट्टी की अग्नि' 'जंतवाड चुल्लीइ वा' ईक्षु-गन्ने के-रसको पकाने की अग्नि 'गोलिया लिंछागणीइ वा गुड पकाने के स्थान की अग्नि 'सोडिया लिंछागणीइवा 'शौडिक अग्नि मद्य पकाने की अग्नि लिंडिया लिंछागणीइवा' बकरी की लिंडी की अग्नि' णडागणीइवा 'नडाग्नि नडवंश की अग्नि 'तिलागणीइवा 'तिल की अग्नि ગાળવાની ભઠી, આ રીતે અગ્નિના સ્થાને કહીને હવે અગ્નિના સ્વરૂપનું કથન १२ छ. 'कुंभागाराणि वा' अस मेटले सगुन ५४१वानी लीना मनि 'मुसागणीइ वा' भूषा मे धातुने पान महान मनि 'इट्टियागणीइवा' 2ीने ५४११॥ मान मनि 'कवेल्लुयागणीइ वा' वेदन नजीया ५४वानी महीना मलिन 'लोहांबरीसेइ वा सोमउन गापासवान। अनि 'जतवाल चुल्लीइ वा' क्षु शरडीन। सन् ५४वानी अनि 'गोलिया लिछागणीइ वा' गण मनापानी भीनी भनि, 'सोडिथा लिछागणीइ वा' dist शनि अर्थात म मनापानी लहान। अनि 'लिडिया लिछागणीइ वा' मरीना सीन RS 'जडागणीइ वा' ननि अर्थात् शनी मनिन 'तिला જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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