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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू.११ सप्तापि पृथ्वीनां परस्परापेक्षया बाहल्यम् १४७ बाहल्येनापि पिण्डभावेन ‘णो तुल्ला-सदृशी न भवति रत्नप्रभाया अशीतिसहस्रो. त्तरलक्षयोजनमानत्वात् शर्कराप्रभायाश्च द्वात्रिंशत्सहस्रोत्तरलक्षयोजनमानस्वात् किन्तु शर्कराप्रभापेक्षया रत्नप्रभा बाहल्येन विशेषाधिका भवति, किन्तु 'नो संखेज्जगुणा' संख्येयगुणाधिका न भवति रत्नप्रभाया अष्टचत्वारिंशत्सहस्रयोजनमात्रस्यैवाधिक्येन संख्येयगुणत्वाभावात् इति । 'वित्थारेणं नो तुल्ला' रत्नप्रभा पृथिवी शर्करा प्रभापृथिव्यपेक्षया विस्तारेण विष्कम्भेनापि न तुल्या किन्तु'विसेसहीणा' विशेषहीना किन्तु णो संखेज्जगुणहीणा' संख्येयगुणहीना न, अस्या हीनत्वे संख्येयगुणत्वाभावाद, प्रदेशादि वृद्धया प्रवर्द्धमाने तावतिक्षेत्रे शर्करा. प्रभाया एव वृद्धिसंभवादिति 'दोच्चा णं भंते ! पुढवी' द्वितीया खलु शर्कराप्रभा 'बाहल्लेणं णो तुल्ला' मोटाई में बराबर नही है क्योंकि रत्न प्रभा पृथिवी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है और शर्करा प्रभा की मोटाई एक लाख बत्तीस हजार योजन की है अतः आपस में दोनों में समानता नहीं है प्रत्युत शर्करा प्रभा की अपेक्षा रत्नप्रभा पृथिवी ही मोटाई में विशेषाधिक है यह कि संख्यात गुणी अधिक उसकी अपेक्षा इसलिये नहीं हो सकती है कि शर्कराप्रभा की अपेक्षा इसकी मोटाई केवल अडतालीस हजार योजन ही अधिक है 'वित्यरेण नो तुल्ला' रत्नप्रभा पृथिवी शर्कराप्रभा की अपेक्षा विस्तार में भी बराबर नहीं हैं किन्तु वह विशेष हीन ही है 'णो संखेज्ज गुणहीणा' इसलिये वह संख्यात गुण हीन नहीं है क्योंकि प्रदेश आदि की वृद्धि से प्रवर्धमान उतने ही क्षेत्र में शर्कराप्रभा की वृद्धि होती है । दोच्चा णं भंते ! पुढवी तच्च पुढविं पणिहाय किं बाहल्लेणं तुल्ला પહોળાઇથી બરાબર નથી. કેમકે રત્નપ્રભા પૃથ્વીની પહોળાઈ એક લાખ એંસી હજાર જનની છે. અને શર્કરારભ પૃથ્વીની પહોળાઈ એક લાખ બત્રીસ હજાર જનની છે. તેથી પરસ્પરમાં બનેમાં સરખાપણું નથી. બલકે શર્કરા પ્રભા કરતાં રત્નપ્રભા પૃથ્વીની પહોળાઈ વિશેષાધિક છે. આ કારણથી તેના કરતાં સંખ્યાત ગણી વધારે તે થઈ શકતી નથી. શર્કરા પ્રભા કરતાં તેની પહોળાઈ १५ मतालीस ॥२ यौन धारे छ. 'वित्थरेण' नो तुल्ला' २त्नप्रसा પૃથ્વી શર્કરામભા પૃથ્વી કરતાં વિસ્તારમાં પણ બરાબર નથી. પરંતુ તે વિશેષ डोनर . णो सखेज्जगुणहीणा' तथी त सभ्यात गुणहीन नथी. उभडे પ્રદેશ વિગેરેની વૃદ્ધિથી વધતા એટલાજ ક્ષેત્રમાં શર્કરામભા પૃથ્વીની વૃદ્ધિ થાય છે 'दोच्चा णं भंते ! पुढवि पणिहाय कि बाहल्लेणं तुल्ला एवं चेव भाणि જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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