SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ जीवाभिगमसूत्रे श्रोत्रेन्द्रियं चक्षुरिन्द्रियं रसनेन्द्रियं ध्राणेन्द्रियं स्पर्शनेन्द्रियं च पुनरपि इन्द्रियमेकैकं द्विप्रकारक द्रव्येन्द्रियं भावेन्द्रियं च द्रव्येन्द्रियमपि द्विप्रकारकं निर्वृत्तिरूपमुपकरणरूपं च तत्र निर्वृतिर्नाम प्रतिविशिष्टः संस्थानविशेषः । निर्वृत्तिरपि द्विधा बाह्याऽऽभ्यन्तरा च, तत्र बाह्या कर्णपर्यटिकादिरूपा सा च विचित्रा न प्रतिनियतरूपतया निर्देष्टुं शक्या तथाहि-मनुष्यस्य श्रोत्रे नेत्रयोरुभयपार्श्वभाविनी, भ्रुवौ चोपरितनश्रवण बन्धापेक्षया समे । वानिनां श्रोत्रे नेत्रयो रुपरि तीक्ष्णाग्रभागयुक्ते भवतः इत्यादि, आभ्यन्तरा निवृत्तिस्तु सर्वेषामेकरूपैव, आभ्यन्तरां निर्वृत्तिमधिकृत्यैव एतानि सूत्राणि भवन्ति 'सोइदिए णं भंते ! कि संठाणसंठिए पन्नत्ते ? गोयमा । कलंबुया संठाणसंठिए पन्नत्ते, चक्खिदिप्रकार की है-श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय । इनमें भी एक २ इन्द्रिय द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय के भेद से दो दो प्रकार की है। द्रव्येन्दिय भी निर्वृत्ति और उपकरण के भेद से दो प्रकार की हैं। प्रतिविशिष्ट संस्थान विशेष का नाम निर्वृत्ति है । निर्वृत्ति भी बाह्य निर्वृत्ति और आभ्यन्तर निर्वृत्ति के भेद से दो प्रकार की होती है। कान की झिल्ली आदि रूप बाह्य निर्वृत्ति होती है। यह बाह्य निर्वृत्ति नाना प्रकार की होती है । अतः प्रतिनियत रूप से यह कही नहीं जासकती है। जैसे-मनुष्य के श्रोत्र और उसके नेत्र की दोनों तरफ की भौहें ये दोनों कान के उपरितन बन्धकी अपेक्षा समान होती है। और धोड़ों के कान उनके दोनों नेत्रों के उपर तीक्ष्ण अग्रभागवाले होते हैं । इत्यादि आभ्यन्तर निर्वृत्ति सब जीवों की समान-एक रूप-ही होती है । ये सूत्र आभ्यन्तर निवृत्ति को लेकर ही कहे गये हैं-"सोइंदिए णं भंते ! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते" हे भदन्त ! श्रोत्रेन्द्रिय का आकार कैसा कहा गया है ? "गोयमा ! कलंबुया संठाणसंठिए पन्नते" हे गौतम ! कदम्बपुष्प के प्रमाणे पाय ४२ छ-(१)श्रोत्रेन्द्रिय (२) यक्षुरिन्द्रिय, (3) प्राणेन्द्रिय, (४) २सनेन्द्रिय, (૫)સ્પર્શેન્દ્રિય. તે પ્રત્યેક ઇન્દ્રિયના કન્દ્રિય અને ભાવેન્દ્રિય નામના બબ્બે ભેદ પડે છે. દ્રન્દ્રિયના નીચે પ્રમાણે બે ભેદ કહ્યા છે-(૧) નિવૃત્તિ અને (૨) ઉપકરણ પ્રતિવિશિષ્ટ સંસ્થાવિશેષનું નામ નિવૃત્તિ છે. નિવૃત્તિના પણ નીચે પ્રમાણે બે ભેદ છે–(૧) બાહ્ય નિવૃત્તિ. (૨) આભ્યન્તર નિવૃત્તિના. કાનની ઝિલ્લિી ( ) આદિ રૂપ બાઘાનિવૃત્તિ હોય છે. તે બાદાનિવૃત્તિ વિવિધ પ્રકારની હોય છે, તેથી તેને કેઈ ચોકકસ રૂપે વર્ણવી શકાય તેમ નથી. જેમ કે માણસના કાન અને તેની આંખોની બન્ને તરફની ભમરો, આ બન્ને કાનના ઉપરના બન્ધની અપેક્ષાએ સમાન હોય છે, અને ઘેડાને કાન તેની બને આંખે ઉપર તીણ અગ્રભાગવાળા હોય છે. સઘળા જીવોની આત્યંતર નિવૃત્તિ એક સરખી જ હોય છે. આસૂત્રે આવ્યંતર નિવૃત્તિનું જ પ્રતિપાદન કરે છે. गौतमस्वामीना प्रश्न-"सोइदिए ण भंते ! किं संठाणसंठिए पण्णते ?" लगन्! જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy