SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 628
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ VVVVVVVVVVVM प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २ सू०२१ विशेषतः सप्तमाष्टमाल्पबहुत्वनिरूपणम् ६१५ पेक्षया लान्तककल्पदेवपुरुषा असंख्येयगुणाधिका भवन्तीति “चउत्थीए पुढवीए णेरइयण पुंसगा असंखेज्जगुणा' लान्तककल्पदेवापेक्षया चतुर्थपृथिवीपङ्कप्रभानैरयिकनपुंसका असंख्येयगुणाधिका भवन्तीति । "बंभलोए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा" चतुर्थपृथिवीनारकनपुंसकापेक्षया ब्रह्मलोके कल्पे ये देवपुरुषा स्ते असंख्येयगुणाधिका भवन्तीति । तच्चाए पुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखज्जगुणा" ब्रह्मलोकदेवापेक्षया तृतीयस्यां बालुकाप्रभायां पृथिव्यां ये नारकनपुंसकाः सन्ति ते असंख्येयगुणाधिका भवन्तीति ।"माहिदे कप्पे देवपुरिसा असंखज्जगुणा' तृतीयपृथिवीनारकनपुंसकापेक्षया माहेन्द्रकल्पे ये देवपुरुषाः सन्ती ते असंख्येयगुणाधिका भवन्तीति 'सणंकुमारकप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा' माहेन्द्रकल्पदेवपुरुषापेक्षया सनत्कुमारकल्पे ये देवपुरुषा भवन्ति ते असंख्यातगुणा अधिका भवन्तीति । “दोच्चाए पुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा' सनत्कुमारदेवापेक्षया द्वितीयस्यां शर्करापृथिव्यां ये नारकनपुंसकाः सन्ति ते असंख्यातगुणा अधिका भवन्तीति “ईसाणे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा' द्वितीयपृथिवी नारकापेक्षया के देवपुरुष असंख्यात गुणे अधिक हैं। 'चउत्थीए पुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा' लान्तक कल्प के देवपुरुषों की अपेक्षा चतुर्थी पंकप्रभा पृथिवी के नैरयिकनपुंसक असंख्यात गुणे अधिक हैं "बंभलोए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा' चतुर्थ पृथिवी के नैरयिकनपुंसकों की अपेक्षा ब्रह्मलोक कल्प के देवपुरुष असंख्यात गुणे अधिक है । “तच्चाए पुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा' ब्रह्मलोक कल्पके देवपुरुषों की अपेक्षा तृतीय वालुका प्रभा पृथिवी के नैरयिकनपुंसक असंख्यात गुणे अधिक हैं “माहिंदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा' तृतीय पृथिवी के नारक नपुंसकों की अपेक्षा माहेन्द्र कल्पके देवपुरुष असंख्यात गुणे अधिक हैं ‘सणंकुमारकप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा' माहेन्द्रकल्प के देवपुरुषों की अपेक्षा सनत्कुमारकल्पके देवपुरुष असंख्यात गुणे अधिक हैं । "दोच्चाए पुढवीए णेरइयणपुंसगा असंखज्जगुणा" सनत्कुमार कल्पके देवपुरुषों की अपेक्षा द्वितीय शर्कराप्रभा पृथिवी में जो नैरयिक नपुंसक है वे असंख्यात गुणे अधिक हैं । “ईसाणे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा' द्वितीय पृथिवीके नैरयिकनपुंसकोंकी योथी ५७७मा पृथ्वीना नै४ि नपुस । असभ्यात वधारे छे. 'बंभलोए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा" योथी पृथ्वीना नैयि नधुस ४२०i ग्रह ४६५ना १५३॥ असं यात धारेछ. "तच्चाए पढवीए णेरडयणपंसगा असंखेज्जगणा" प्रापना विपर। ४२di श्री वासुमा पृथ्वीना नैराय नपुंस। असभ्याता धारे छे. 'माहिदे कप्पे देवपुरिसा असंत्रेज्जगुणा" श्री पृथ्वीना ना२४ नस। ४२di भाईन्द्र ४६५न वपुषा असण्यातम पधारे छे. “सणंकुमारकप्पे देवपुरिसा असखेज्जगुणा" भान्द्र४६५ना हे. ५३॥ ४२तi सनभार ४८५ना हे३५३षा मन्यात वधारे छे. "दोच्चाए पुढवीए जेरइय णपुंसगा असंखेज्जगुणा" सनमा२ ४६५ना १५३५॥ ४२ता पी श६२ प्रमा पृथ्वीना नैश्य नस। मसभ्यात गए। घारे छ. "ईसाणे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा" मी જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy