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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति०२ नपुंसकस्वरूपनिरूपणम् ५७९ सम्प्रति-मनुष्यनपुंसकविषयकं चतुर्थमल्पबहुत्वमाह —'एएसि गं' इत्यादि, एएसिणं भंते' एतेषां खलु भदन्त ! 'मणुस्सणपुंसगाण' मनुष्यनपुंसकानाम् 'कम्मभूमिग णपुंसगाणं' कर्मभूमिकनपुंसकानाम् 'अकम्मभूमिगणपुंसगाणं' अकर्मभूमिकनपुंसकानाम् 'अंतरदीवगाणय' अन्तरद्वीपकानां च 'कयरे कयरेहितो कतरे कतरेभ्यः अप्पावा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा अल्पावा बहु का वा तुल्या वा विशेषाधिकावेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! सव्वत्थोवा सर्वस्तोकाः, अन्तरदीवग अकम्मभूमिग मणुस्सनपुंसगा अन्तर द्वीपकाकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकाः, एते च संमूर्छनजा ज्ञातव्याः, गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यनपुंसकानामन्तरद्वीपेऽसंभवात् गर्भव्युत्क्रान्तिकनपुंसका यदि तत्र भवेयुस्तदा ते कर्मभूमिजाः संहृता एव लभ्यन्ते न तु तत्रोत्पत्तिमन्त इति देवउत्तरकुरू अकम्मभूभिगा दोवितुल्ला संखेज्जगुणा अन्तर द्वीपकमनुष्यनपुंसकापेक्षया देवकुरूत्तरकु र्वकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकाः संख्येयगुणा अधिका भवन्ति मनुष्य नपुंसक विषयक चतुर्थ अल्प बहुत्व इस प्रकार से है “एएसिणं भंते ! मणुस्सणपुंसगाणं कम्मभूमिगणपुंसगाणं अकम्मभूमिगणपुंसगाणं अंतर दीवगाणय कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहियावा" इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! मनुष्य नपुंसकों के, कर्मभूमिक मनुष्य नपुंससकों के,अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसकों के, और अन्तरद्वीपज मनुष्य नपुंसकों के बीचमें कौन मनुष्य नपुंसक किन मनुष्यनपुंसको से अल्प है ? कौन किनसे अधिक हैं ? कौन किनके बराबर है ? और कौन किनसे विशेषाधिक है ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं - "गोयमा ! अंतर दीवग अकम्म भूमिग मणुस्स णपुंसगा" हे गौतम ! अन्तर द्वीपज जो मनुष्य नपुंसक हैं वे "सव्वत्थोवा" सबसे कम हैं- ये अन्तरद्वीपज मनुष्य नपुंसक संमूर्च्छन जन्मवाले होते हैं. क्योंकि गर्भजमनुष्य नपुंसकों की अन्तरद्वीपमें संभावना नहीं है, अन्तरद्वीपमें जो गर्भज मनुष्य नपुंसक हों तो वे कर्मभूमि से संहरण करके वे मनुष्य नसोना समयमा याथु १६५ गई पाडेवामां आवे छे. “एएसिण भंते. मणुस्स णपुंसगाणं कम्मभूमिगणपुंसगाण अकम्मभूमिग णपुंसगाणं अंतर दीवगाणयकयरेकयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा” मामा गौतम स्वामी પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે-હે ભગવન મનુષ્ય નપુંસકમાં,કર્મભૂમિના મનુષ્ય નપુંસકમાં અકર્મ ભૂમિના મનુષ્ય નપુંસકમાં અને અંતરદ્વીપના મનુષ્ય નપુંસકમાં કયા મનુષ્ય નપુંસકે કયા મનુષ્યનપુંસકેથી અલપ-ઓછા છે? કેણ કોનાથી વધારે છે? કેણુકની બરાબર છે? અને કણ કેનાથી વિશેષાધિક छ ? सा प्रश्नना उत्तरभां प्रभु गौतम स्वाभीने अहेछ - "गोयमा ! अंतर दीवग अकम्मभूमिगमणुस्स णपुंसगा सव्वत्थोवा” हे गौतम ! मतदीपनाले मनुष्य नस। छ, तमे। સૌથી ઓછા છે. આ અંતરદ્વીપના મનુષ્ય નપુસકે સંમૂર્છાિમ જન્મવાળા હોય છે. કેમકેગર્ભજ મનુષ્ય નપુંસકની અંતરદ્વીપમાં સંભાવના નથી. અંતરદ્વીપમાં જે ગર્ભજ મનુષ્ય જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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