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________________ ५७८ जीवाभिगमसूत्रे कनपुंसकाः 'विसेसाहिया' विशेषाधिका भवन्ति प्रभूतासंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाणत्वादिति । 'एवं आऊवाऊ' एवम्-एवमेव पृथिवीकायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकवदेव अप्कायिका वायुकायिकाः, यथोत्तरं विशेषाधिका भवन्ति तथाहि-पृथिवीकायिकैकेन्द्रियतिर्यगयोनिकनपुंसकापेक्षया अप्कायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका विशेषाधिका भवन्ति प्रभूततरासंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाणत्वात् । अप्कायिकनपुंसकापेक्षया वायुकायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका विशेषाधिकाः, प्रभूततमासंख्येयलोकाकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् । 'वणस्सइकाइय एगिदियतिरिक्ख जोणिय णपुंसगा अणंतगुणा' वायुकायिकनपुंसकापेक्षया वनस्पतिकायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका अनन्तगुणा अधिका भवन्ति अनन्तलोकाकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वादिति तृतीयमल्पभहुत्वम् । नपुंसक “विसेसाहिया" विशेषाधिक हैं । क्योंकि इनका प्रमाण प्रभूत असंख्यात लोकाकाश के प्रदेशों के बराबर है । “एवं आऊवाऊ एगिदिय तिरिक्ख जोणिय णपुंसगा अणंतगुणा" पृथिवी कायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक विशेषाधिक हैं । क्योंकि इनका प्रमाण प्रभूततर असंख्यात लोकाकाश के प्रदेशों के बराबर कहा गया है । अप्कायिक नपुंसकों की अपेक्षा वायुकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक विशेषाधिक हैं । क्योंकि इनका प्रमाण प्रभूततम असंख्यात लोकाकाश के प्रदेशों की राशि के बराबर है “वणस्सइकाइय एगिदिय तिरिक्ख जोणिय णपुंसगा अणंतगुणा” वायुकायिक नपुंसकों की अपेक्षा वनस्पति कायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्यो निक नपुंसक अनन्त गुणे अधिक हैं। क्योंकि इनका प्रमाण अनन्त लोकाकोश के प्रदेशों के बराबर कहा गया है । इस प्रकार से यह तिर्यग्योनिक नपुंसकों का तृतीय अल्पबहुत्त्व है। नु प्रमाण मसभ्यात शना प्रशानी भराभर वामां मावेस छे. 'पुढवीकाइय एगिदियतिरिक्खजोणिया' तेय मेद्रिय वा तिच्यानि नस। ४२ता पृथ्वी यि येद्रिय तिययानि नपुंस "विसेसाहिया" विशेषाधि छ. उभो तेनु प्रमाण प्रभूत असण्यात दोशना प्रशानी २०१२ छ. “ एवं आऊ वाऊ एगिदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगा अणंतगुणा" पृथ्वी यि से दियवा तिय-योनि नधुसर विशेषाધિક છે. કેમકે તેનું પ્રમાણ પ્રભૂતતર અસંખ્યાત કાકાશના પ્રદેશોની બરોબર છે. અપકાયિક નપુંસક કરતાં વાયુકાયિક એક ઈદ્રિય વાળા તિર્યનિક નપુંસક વિશેષાધિક છે. કેમકે–તેઓનું પ્રમાણ પ્રભૂતતમ અસંખ્યાત લેકાકાશના પ્રદેશની રાશિની બરાબર છે. “वणस्सइ काइय एगिदियतिरिक्ख जोणिय णपुंसगाअणतगुणा" वायुयि नसाना કરતાં વનસ્પતિકાયિક એક ઈદ્રિયવાળા તિર્યોનિક નપુંસકે અનંતગણું વધારે છે. કેમકે– તેઓનું પ્રમાણ અનંતકાકાશના પ્રદેશની બરાબર છે. આ પ્રમાણે આ તિર્યનિક નપું. સોનું ત્રીજું અલ્પ બહુપણું કહેલ છે. જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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