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________________ ५३२ जीवाभिगमसूत्रे स्ते सर्वे भेदप्रभेदा अत्र वाच्याः, विशेष एतावानेव यत् तत्र उरःपरिसप॑षु आसालिकरूपस्तद्भेदः कथितः सोऽत्र न वाच्यः, तस्य चक्रवर्त्यादिस्कन्धाबारादिषु कचित्संमूर्छनसंभवात्, अन्तर्मुहूर्ताद्धामात्रायुष्कत्वाच्चात्र न विवक्षित इति । ‘से तं पंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' ते एते पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः भेदप्रभेदाभ्यां निरूपिता इति । अथ मनुष्य नपुंसकान् निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह ‘से किं तं मणुस्सण पुंसगा' अथ के ते मनुष्यनपुंसकाः ? इति प्रश्नः, भगवानाह 'मणुस्सणपुंसगा तिविहा पन्नत्ता' मनुष्यनपुंसका स्त्रिविधाः त्रिप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः, 'तंजहा' तद्यथा 'कम्मभूमिगा' कर्मभूमिकाः कर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकाः 'अकम्मभूमिगा' अकर्मभूमिका अकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकाः, 'अंतरदीवगा' अन्तरद्वीपकाः अन्तरद्वीपकमनुष्यनपुंसकाः । 'भेदो जाव भाणियव्वो' भेदो यावद् भणितव्यः कर्मभूमिकमनुष्याणामकर्मभूकी प्रथम प्रतिपत्ति में विस्तार से कहे गये हैं वे सब भेद प्रभेद यहां भी कहलेना चाहिये, भेद केवल इतना ही हैं कि वहां उरःपरिसर्प के भेदों मे आसालिक एक सर्प का भेद कहा है वह यहां नहीं कहना चाहिये। क्योंकि वह चक्रवर्ती आदि के स्कन्धावार----फोजोंका पडाव डेरा आदि में कहीं कहीं संमूर्छित होता है और अन्तर्मुहर्त काल मात्र इसकी आयु होती है इसलिये इसकी यहाँ विवक्षा नहीं है । 'से तं पंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' इस प्रकार से ये सब पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक है । अब मनुष्य नपुंसकों का निरूपणकरते हैं—'से किं तं मणुस्सणपुंसगा' हे भदन्त ! मनुष्य नपुंसक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? गौतम ‘मणुस्स णपुंसगा तिविहा पण्णत्ता' मनुष्यनपुंसक तीन प्रकार के कहे गये हैं। 'तं जहा जैसे—'कम्मभूमिगा' कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक 'अकम्मभूमिगा' अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक પહેલી પ્રતિપત્તિમાં વિસ્તાર પૂર્વક કહેવામાં આવેલ છે. આ તમામ ભેદ પ્રભેદો અહિયાં પણ કહેવા જોઈએ. આમાં ભેદ કેવળ એટલો જ છે કે-ત્યાં ઉર:પરિસર્ષના ભેદોમાં આસાલિક એ એક સપને ભેદ કહેલ છે, તે ભેદ અહિયાં કહેવાનો નથી. કેમકે–તે ચક્રવતી' વિગેરેના સ્કન્ધાવાર–સૈન્યના પડાવ વિગેરેમાં કયાંક કયાંક સંમૂચ્છિત હોય છે. અને અંતમુહૂર્ત કાલ भात्र तेनु मायुष्य डाय छे. तथा मडिया तनी विषक्षा ४२वामां मावी नथी, “से तं पंचिंदिय - तिरिक्खजोणियणपुसगा” मा प्रमाणे या मथा पांय द्रियो पात तिय-योनि नपुસકેના ભેદોનું નિરૂપણ કર્યું છે. वे मनुष्य नघुस ।नु (न३५९४ ४२पामा आवे छे.-"से कि त मणुस्सणसगा' હે ભગવન મનુષ્ય નપુંસક કેટલા પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ गौतम स्वामीने ४३ छे - “गोयमा !" 3 गौतम ! "मणुस्सणपुंसगा तिविहा पण्णता" भनुष्य नघुस २ ४ारना ai छ. "तं जहा" my । ॥ प्रमाणे छे. “कम्मभूमिगा” भभूभिना मनुष्य नस "अकम्मभूमिगा” 248 भूमिना मनुष्य नधुस। “अंत જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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