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प्रमेयद्योतिका टीका प्रति०२
पुरुषवेदस्य बन्धस्थितिनिरूपणम् ५२३ टीका—'पुरिसवेयस्स णं भंते' पुरुषवेदस्य खलु भदन्त ! 'कम्मस्स' कर्मणः 'केवइयं कालं' कियन्तं कलम् 'बंधठिई पन्नत्ता'बन्धस्थितिः प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्नः, भगवानाह -'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं' जघन्येन 'अट्ट संवच्छराई' अष्टौ संवत्सराणि एतन्न्यूनस्य तन्निबन्धनविशिष्टाध्यवसायस्याभावतो जघन्यत्वेनासंभवात् 'उक्कोसेण दस सागरो वमकोडाकोडीओ' उत्कर्षेण दश सागरोपमकोटिकोटयः, इह स्थितिः द्विधा भवति, कर्म रूपतावस्थानलक्षणा अनुभवयोग्या च तत्रेयं कर्मरूपताऽवस्थानलक्षणा द्रष्टव्या, अनुभवयोग्या तु कर्मस्थितिरबाधाहीना भवति, अतएवोक्तम्— 'दसवाससयाई अबाहा' दशवर्षशतानि "पुरिसवेदस्स ण भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं बंधढिई पण्णत्ता, इत्यादि
टीकार्थ ... "पुरिसवेदस्स णं भंते ! 'कम्मस' पुरुष वेदकर्मकी “केवइयं कालं" कितने कालकी "बंधटिई पन्नत्ता" बन्धस्थिति कही गई है ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं---"गोयमा ! जहन्नेणं अट्ठ संवच्छराई" हे गौतम ! पुरुषवेद कर्म की बन्धस्थिति जधन्य से आठवर्ष की है-क्यों कि इससे कम पुरुषवेद के निबन्धन विशिष्ट अध्यवसाय के अभाव से इसके कम जधन्य स्थिति का संभव नहीं होता है। और “उक्कोसेणं दस सागरोवम कोडाकोडीओ" उत्कृष्ट से १० दस सागरोपम कोटा कोटि की कही गई है. यहां स्थिति दो प्रकार की होती है- (१) कर्मरूप से अवस्थान रहना और (२)-अनुभव योग्य होना. यह स्थिति कर्मरूप से अवस्थान रहने रूप कही गई है- तथा अनुभव होने योग्य रूप जो कर्म स्थिति होती है वह अबाधा काल से हीन होती है. अर्थात् जोभी कर्म उदय में आता वह अपनी अबाधा काल के बाद ही आता है. अबाधा काल का हिसाब इस प्रकार से कहा गया है-"दसवाससयाई, 'अबाहा' जिस कर्म की उत्कृष्टस्थिति जितने सागरोपम कोटाकोटि की होती है
"पुरिसवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं बंधहिई पण्णत्ता" या.
"परिसवेदस्सं णं भंते ! कम्मस्स" हे भगवन् पु३१वे भनी “केवइयं कालं" टमा अनी "बंधट्टिई पन्नत्ता" म स्थिति छी छे. गौतम स्वामीनामा प्रश्न उत्तर भापता प्रभु हेछ - "गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठ संवच्छराई" गौतम ! ५३५ पेभनी બંધ સ્થિતિ જઘન્યથી આઠ વર્ષની છે. કેમકે તેનાથી ઓછા પુરૂષ વેદના બંધ વાળા અધ્યपसायना समाथी तेन साछी धन्य स्थितिना संभव होत नथी. अने “उक्कोसेणं दससासरोवसकोडाकोडीओ" Getथी १० इस साभाटिटिनी ही छ. माडयां स्थिति में प्रा२नी हाय छे. (१) ४३५थी सवस्थित २. मने (२) अनुभव योग्य थj. આ સ્થિતિ કર્મ રૂપથી અવસ્થાને રહેવા રૂપ કહેલ છે. તથા અનુભવ હેવાને ગ્ય રૂ૫ વાળી જે કર્મસ્થિતિ હોય છે. તે અબાધા કાળથી હીન હોય છે. અર્થાત્ જે કઈ કમ ઉદયમાં આવે છે, તે પિતાના અબાધા કાળથી હીન આવે છે. અબાધા કાળને હિસાબ આ પ્રમાણે म छ.- “दसवाससयाई अबाहा" ने भनी उत्कृष्ट स्थिति सा सामोटी
જીવાભિગમસૂત્ર