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________________ દૂર जीवाभिगमसूत्रे ज्ञातव्यं तत्राह - 'जाव' इत्यादि, 'जाव सव्वट्टसिद्धा' यावत्सर्वार्थसिद्धाः सर्वार्थसिद्धदेवपुरुष पर्यन्तं ज्ञातव्यमिति । तथाहि - देवपुरुषाश्चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा - भवनवासिनो वानव्यन्तरा ज्योतिषका वैमानिकाश्च । तत्र भवनवासिनोऽसुर कुमारादिस्तनितकुमारान्त भेदेन दशविधा - भवन्तीति । वानव्यन्तराः पिशाचभूत-यक्ष- गन्धर्व - राक्षस- किन्नर - किंपुरुष - महोरगभेदेन अष्टप्रकारका भवन्ति । ज्योतिष्काचन्द्र-सूर्य - ग्रहनक्षत्र - ताराविमान भेदेन पञ्चप्रकारका भवन्ति । वैमानिकाः कल्पोपपन्नकल्पातीतभेदेन द्विविधाः, तत्र कल्पोपपन्नकाः सौधर्मादिभेदेन द्वादशविधा भवन्ति, कल्पातीतास्तु ग्रैवेयकानुत्तरोपपातिकभेदेन द्विविधा भवन्ति । एतदाशयेनैव कथितम् 'जाव सवसिद्धा' इति ॥ सू० ८ || चार प्रकार के कहे गये हैं- भवनवासी देवपुरुष, वानव्यन्तर देवपुरुष, ज्योतिष्क देव पुरुष और वैमानिक देव पुरुष इनमें भवनवासी देवपुरुष असुर, नाग, सुपर्ण, विद्युत, अग्नि, द्वीप, उदधि दिशा, वायु और स्तनितकुमारदेवपुरुष ऐसे दस प्रकार के होते हैं। वान व्यन्तर देव पुरुष -पिशाच देवपुरुष १, भूत देवपुरुष २, यक्ष देवपुरुष ३, राक्षस देव पुरुष, ४, किंनर देवपुरुष ५, किंपुरुष देवपुरुष ६, महोरग देवपुरुष ७, गन्धर्व देव पुरुष ८, इस प्रकार से आठ प्रकार के होते हैं । ज्योतिष्क देवपुरुष चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा विमान के भेद से पाँच प्रकार के होते हैं । वैमानिक देव पुरुष — कल्पोपपन्न और कल्पातीत के भेद से दो प्रकार के होते हैं । इनमें कल्पोपपन्न देवपुरुष सौधर्मादि देव पुरुष के भेद से बारह प्रकार के है । कल्पातीत देव पुरुष ग्रैवेयक और अनुत्तरोपपातिक के भेद से दो प्रकार के है । इसी आशय को लेकर सूत्रकार ने " जाव सव्वट्टसिद्धा" सर्वार्थ सिद्ध देव पुरुष पर्यन्त ऐसा पाठ कहा है ||सूत्र ८ || અને આ દેવપુરુષ સંબંધી પ્રકરણ સર્વાસિદ્ધ દેવપુરુષના પ્રકરણ સુધી કહેવું જોઈ એ, જેમકે — દેવપુરુષ ચાર પ્રકારના કહ્યા છે, ભવનવાસી દેવપુરુષ વાનવ્યતર ધ્રુવ પુરૂષ, જ્યોતિષ્ક દેવ પુરુષ, અને વૈમાનિક દેવપુરુષ, આમાં ભવનવાસી દેવપુરુષ, અસુર, નાગ, सुषण, विद्युत, अग्नि, द्वीप, उदधि, दिशा, वायु अने स्तनित कुमार देवपुरुष या रीते हस પ્રકારના હાય છે. વાનવ્યંતર દેવપુરુષ પિશાચ દેવ પુરૂષ, 'ભૂતદેવપુરૂષ, યક્ષદેવપુરૂષ, રાક્ષસ દેવપુરૂષ,* કિનર દેવ પુરૂષ,` કિ`પુરૂષ દેવપુરૂષ,' મહેારગ દેવપુરૂષ.” ગંધવ हेवपु३ष या प्रमाणे माठ प्रारना होय छे. ज्योतिष्णु देवयु३ष - यद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, અને તારા વિમાનના ભેદથી પાંચ પ્રકારના હોય છે. વૈમાનિક દેવપુરૂષ કલ્પપપન્ન અને કલ્પાતીત એ ભેદથી બે પ્રકારના હોય છે. તેમાં કલ્પાપપન્ન દેવપુરૂષ સૌધર્માદિ દેવ પુરૂષના ભેદથી બાર પ્રકારના હોય છે. તથા કલ્પાતીત દેવપુરૂષ — ત્રૈવેયક અને અનુત્તરययाति ना लेहथी में प्रारना होय है. खान अलियाय ने सई ने सूत्र "जाव सव सिद्धा" सर्वार्थ सिद्ध हेवपु३ष पर्यंत या प्रभाणुना पाठ आहेत . ॥ सू.८ ॥ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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