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________________ AM प्रमेयद्योतिका टीका प्रति०२ पुरुषभेदनिरूपणम् ४६१ अथ मनुष्यपुरुषान् निरूपयितुमाह-'से किं तं' इत्यादि, ‘से किं तं मणुस्सपुरिसा' अथ के ते मनुष्यपुरुषाः मनुष्यपुरुषाणां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, उत्तरयति'मणुस्सपुरिसा तिविहा पन्नत्ता' मनुष्यपुरुषास्त्रिविधा स्त्रिप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः-कथिता इति । त्रैविध्यं दर्शयति-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'कम्मभूमिगा अकम्मभूमिगा अंतरदीवगा' कर्मभूमिकाः-कर्मभूमिजाः, पञ्चभरत-पञ्चैरवत-पञ्चमहाविदेहेति पञ्चदशविधकर्मभूम्यां जाताः, अकर्मभूम्यां हैमवत-हैरण्यवत-हरिवर्ष-रम्यकवर्ष-देवकुरू तर-कुरुरूपायां जाताः अकर्मभूमिजाः, अन्तरद्वीपकाः अन्तरद्वीपेषु-षट्पञ्चाशद्विधेषु समुद्भवा इति । 'से तं मणुस्सपुरिसा' ते एते मनुष्यपुरुषाः सप्रभेदाः कथिता इति ॥ देवपुरुषान् निरूपायतुमाह---'से किं त' इत्यादि, 'से किं तं देवपुरिसा' अथ के ते देवपुरुषाः ? देवपुरुषाः कियन्तो भवन्तीति प्रश्नः, उत्तरयति-'देवपुरिसा चउचिहा पन्नत्ता' देवपुरुषाश्चतुर्विधा श्चतुः प्रकारकाः प्रज्ञप्ताः-कथिताः, 'इस्थिभेदो भाणियव्वो' स्त्रीभेदो भणितव्यः, यथा देवस्त्रीणा भेदाः कथिताः तथैव देवपुरुषाणामपि भेदा भणितव्याः, कियत्पर्यन्तं देवस्त्रीप्रकरणमत्र मणुस्सपुरिसा' हे भदन्त ! मनुष्य पुरुष कितने प्रकार के हैं-उत्तर में प्रभु कहते हैं"मणुस्सपुरिसा तिविहा पन्नत्ता" हे गौतम ! मनुष्य पुरुष तीन प्रकार के हैं-"तं जहा" जैसे-“कम्मभूमिगा अकम्मभूमिगा अंतरदीवगा" पांच भरत पांच ऐश्वत पांच महाविदेह क्षेत्र के भेद से प्रन्द्रहप्रकार के कर्मभूमिज मनुष्य पुरुष हैमवत हैरण्यवत हरि वर्ष रम्यक वर्ष देवकुरु उत्तरकुरु रूप अकर्मभूमिज मनुष्य पुरुष और छप्पन अन्तरद्वीप के अन्तरद्वीपज मनुष्य पुरुष "से तं मणुस्सपुरिसा” इस प्रकार से मनुष्य पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं। "से किं तं देवारिसा" हे भदन्त ! देवपुरुष कितने प्रकार के होते हैं ! उत्तर में प्रभु कहते हैं - "देवपुरिसा चउव्विहा पन्नत्ता" हे गौतम ! देवपुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं । "इथि भेदो भाणियव्यो" यहां जिस प्रकार से देवस्त्रियों के भेद कहे गये हैं उसी प्रकार से देव पुरुषों के भी भेद कहलेना चाहिये । और यह देव पुरुष सम्बन्धी प्रकरण सर्वार्थ सिद्ध देवपुरुष प्रकरण तक कहना चाहिये । जैसे- देवपुरुष "से किं तं मणुस्सपुरिसा" भगवन् मनुष्य ५३५ ४८सा ना हाय छ ! ॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४४ छ - "मणुस्सपुरिसा तिविहा पण्णत्ता" गीतम ! मनुष्य पुरुष प्रारना ai छ. "तं जहा" ते या प्रमाणे छे. “कम्मभूमिगा अकम्मभूमिगा अंतरदी वगा" पांय भरत, पांय भैरवत, मने पांय महावित क्षेत्रना मेथी ५६२ प्रा२ना भभूमित મનુષ્ય પુરુષ છે. હૈમવત, ઐરણ્યવત હરિવર્ષ રમ્યક વર્ષ દેવકુરૂ અને ઉત્તરકુરૂ રૂપ અકર્મભૂમિના मनुष्य ५३५, भने छ५५न मतदीपना मतदी५४ मनुष्य ५३५, “से तं मणुस्सपुरिसा" मा शत मनुष्य पुरषो त्रय प्रशारना ४ा छ. “से किं तं देवपुरिसा" मापन हेवपुरुषो डेटसा प्रारना डाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४३ छ -“देव पुरिसा च उविवहा पण्णत्ता" गौतम! हे पुरुषो न्या२ ५४२ना ४i छे. “इस्थिभेदो भाणियव्वो" જે પ્રમાણે દેવિયાના ભેદો કહ્યાં છે. એ જ પ્રમાણેના દેવપુરુષોના ભેદે પણ કહી લેવા જોઈએ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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