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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति०२ स्त्रीणां प्रथममल्पबहुत्वनिरूपणम् ४५१ द्वय्योऽपि परस्परं तुल्या एव भवन्ति तथा हैमवतैरण्यवतदेव्यपेक्षया संख्यातगुणा अधिका इति । 'पुव्व विदेहअवरविदेहवास कम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दो वि तुल्लाओ संखेज्ज गुणाओ' पूर्व विदेहापरविदेहवर्ष कर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियो द्वय्योऽपि भरतैरवतस्त्र्यपेक्षया संख्यातगुणा अधिका भवन्तीति । 'वेमाणियदेवित्थीओ असंखेज्जगुणाओ' वैमानिकदेवस्त्रियोमनुष्यरूयपेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवन्ति, असंख्येयश्रेण्याकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् तासामिति । 'भवणवासिदेवित्थीओ असंखेज्जगुणाओ' भवनवासिदेवस्त्रियो वैमानिक देव्यपेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवन्ति, अत्र युक्तिः पूर्वोक्तैवेति । 'खहयरतिरिक्खजो णित्थीओ असंखेज्जगुणाओ' भवनवासिदेव्यपेक्षया खेचरतिर्यग्योनिकस्त्रियोऽसंख्येयगुणा अधिका भवन्ति, प्रतरासंख्येयभागवर्त्यसंख्येयश्रेणीगताकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् खेचरस्त्रीणामिति थलयरतिरिक्खजोणित्थीओ संखेज्जगुणाओ' खेचरस्यपेक्षया स्थलचरतिर्यवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ' भरतक्षेत्र एवं ऐरवत क्षेत्ररूप कर्ममूमिकी मनुष्यस्त्रियां परस्पर में तुल्य होकर हैमवत और ऐरण्यवत क्षेत्र की मनुष्यस्त्रियों से संख्यात गुणी अधिक हैं । "पुव्वविदेहअवरविदेहवासकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ" पूर्व विदेह और अपरविदेहरूप कर्मभूमिकी मनुष्यस्त्रियां परस्पर में तुल्य और भरत क्षेत्र और ऐरवत क्षेत्र की मनुष्यस्त्रियों से संख्यात गुणी अधिक हैं । 'वेमाणियदेवि त्थीओ असंखेज्जगुणाओ' वैमानिक देव स्त्रियां पूर्वविदेह अपरविदेह मनुष्य स्त्रियों की अपेक्षा असंख्यात गुणी अधिक हैं। अर्थात् असंख्यात श्रेण्याकाशके जितने प्रदेश होते हैं उतने प्रमाणवाली हैं "भवणवासि देवित्थीओ असंखेज्जगुणाओ' भवनवासि देवस्त्रियां वैमानिकदेवस्त्रियों की अपेक्षा असंख्यात गुणी अधिक हैं "खहयरतिरिक्खजोणित्थीओ असंखेज्जगुणाओ' भवनवासी देवस्त्रियो की अपेक्षा खेचर तियेग योनिक स्त्रियां असंख्यात गुणी अधिक हैं। क्यों कि प्रतर के असंख्यातवें भाग में रहे हुए असंख्यात श्रेणीगत आकाश के प्रदेशों की जितनी राशि होती है उतनी राशि प्रमाण खेचर स्त्रियां हैं । "थलयर तिरिक्खजोणित्थीવિદેહ અને અપરવિદેહ રૂપ કર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિયી પરમ્પરમાં તુલ્ય છે, અને ભરતક્ષેત્ર तथा भैरवतक्षेत्रनी मनुष्य स्त्रियाथी सध्यातराणी वधाई छ. 'वेमाणियदेवित्थीओ असंखेज्जगुणाओ" वैमानि विये। पूर्व विड तथा २५५२विटेड नी मनुष्य स्त्रियो ४२तi सस ખ્યાત ગણી વધારે છે અર્થાત અસંખ્યાત શ્રેણ્યાકાશ ના જેટલા પ્રદેશો હોય છે, તેટલા प्रमाणपाणी छे. "भवणवासिदेवित्थीओ असंखेज्जगुणाओ" भवनवासी देवनी क्यिा वैभान हेवनी क्यो२तां मसभ्याताणी पधारे छ “खहयरतिरिक्खजोणित्थीओ असं खेज्जगुणाओ" भवनवासी हेवनी देविया ४२ता मेय२ तिर्य योनि श्रिये। असभ्याताजी વધારે છે કેમકે પ્રતરના અસંખ્યાતમા ભાગમાં રહેલા અસંખ્યાત શ્રેણી ગત આકાશના प्रशानी २८सी शशि डाय छे, मेटली शशिप्रभा मेय२ स्त्रिया छे. थलयरतिरिक्ख જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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