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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति०२ स्त्रीणां स्त्रोत्वेनावस्थानकालनिरूपणम् ४२७ देशतो न्यूनं पल्योपमस्यासंख्येयभागम् तदपि पल्योपमस्यासंख्येयभागेनोनं हीनमित्यर्थः ततश्च पल्योपमासंखयेयभागहीनत्वमेव देशोनत्वमित्यर्थः, “उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभार्ग' उत्कर्षेण पल्योपमस्यासंख्येयभागं यावदन्तरद्वीपकाकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियास्तादृशमनुष्यस्त्रीरूपेणावस्थानं भवतीतिभावः । जन्मापेक्षया जधन्यत उत्कर्षतश्च तत्र मनुष्याणामेतावत्प्रमाणस्यायुषः संभवात् , यतस्ते मरणानन्तरं देवगतावुत्पद्यन्ते इति। 'संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं' संहरणं प्रतीत्य संहरणापेक्षया तु जघन्येनान्तमुहूर्तम् 'उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं देवणाए पुचकोडीए अब्भहियं' उत्कर्षेण पल्योपमस्यासंख्येयभाग देशोनया पूर्वकोट्याऽभ्यधिकं यावदवस्थानमन्तरद्वीपकाकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियास्तादृशमनुष्यस्त्रीरूपेण भवतीति भावः, भावनो पूर्ववदिति । सामान्यतो विशेषतश्च मनुष्यत्रीवक्तव्यता कथिता, सम्प्रति देवस्त्रीवक्तव्यतामाह-'देविस्थीण' इत्यादि, देविस्थीणं भंते ! देवस्त्री खलु भदन्त ! 'देवित्थित्ति इभागेण ऊणं' हे गौतम! जन्म की अपेक्षा लेकर तो अन्तर द्वीपक अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों का वहाँ की मनुष्य स्त्रियों के रूप में रहने का काल जधन्य से कुछ कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और "उक्कोसेणं पलिओवमस्स अंसखेज्जइभार्ग" उत्कृष्ट से पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है वहां जधन्य से तथा उत्कृष्ट से मनुष्यों की इतने ही काल की आयु का संभव हैं क्योकि वहां से मरने बाद वे देवयोनि में उत्पन होते हैं। 'सहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागंदेसणाए पुवकोडीए अब्भहियं" तथा संहरण की अपेक्षा लेकर जघन्य से उनका उस रूप से रहने का काल एक अन्तर्मुहूर्त का हैं और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि से अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं भावना पूर्ववत् समझ लेवें । इस प्रकार सामान्य और विशेष रूप से मनुष्यस्त्री के सम्बन्ध में वक्तव्यता प्रकट की गई है। णं देसूर्ण पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणं" है गौतम જન્મની અપેક્ષાથી તે અંતર દ્વીપજ અકર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિને ત્યાંની મનુષ્ય સ્ત્રી પણાથી રહેવાને કાળ જઘન્યથી કંઈક એ છે પલ્યોપમના અસંખ્યાતમા ભાગથી છે ५त्यो ५मना असभ्यातमा भागभाना छ. अने “उक्कोसेणं पलिओवमस्त असंखेज्जइभागं" थी पक्ष्या५मना मध्यातमा मागप्रमाणन छे. त्यां धन्यथा मन 88ખથી મનુષ્યોની એટલાજ કાળની આયુ ને સંભવ છે. કેમકે-ત્યાંથી મર્યા પછી તેઓ દેવयोनिमा उत्पन्न थाय छे. “संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं देसूणाए पुव्वकोडीए अभहियं" तथा सहनी अपेक्षाथी धन्यथा तना તેવા રૂપે રહેવાનો કાળ એક અંતર્મુહૂર્ત ને છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશનપૂર્વ કેટિથી વધારે પપના અસંખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણને છે. તેની રીત પહેલા પ્રમાણે સમજી લેવી. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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