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प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २
देवस्त्रीणां भवस्थितिमावनिरूपणम् ३९५
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कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता- कथितेति सामान्यतो देवत्रीणां स्थितिविषये प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! ' जहन्नेणं दसवास सहस्साईं ' जधन्येन दशवर्षसहस्राणि देवatri स्थितिकालो भवतीति तानि च भवनपतिस्त्रीः व्यन्तरस्त्रीरधिकृत्य ज्ञातव्यानीति । 'उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओ माई' उत्कर्षेण पञ्च पञ्चाशत् पल्योपमानि स्थितिर्भवति देवस्त्रीणामिति, एतानि चेशान देवीरधिकृत्य ज्ञातव्यानीति । तदेवं सामान्यतो देवत्रीणां स्थिति प्रदर्य विशेतो देवत्रीणां स्थिति दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह - 'भवणवा सिदे वित्थीणं' इत्यादि, 'भवणवासिदेवित्थीणं भंते' भवनवासिदेवस्त्रीणां भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पन्नता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्तेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! जहन्नेणं दसवास सहरसाई' जघन्येन दशवर्षसहस्राणि स्थितिर्भवति भवनवासिदेवस्त्रीणाम्, 'उक्कोहे भदन्त ! देवस्त्रियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? ऐसा यह प्रश्न सामान्य से देवस्त्रियों की स्थिति के विषय में है- उत्तर में प्रभु कहते हैं - " गोयमा ! जहन्नेणं दसवास सहसाईं उक्को सेणं पणपन्नं पलिओ माई " गौतम ! जघन्य से इन की स्थिति तो दश हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट से पचपन पल्योपम की है । जघन्य से दस हजार वर्ष की स्थिति का कथन भवनपति और व्यन्तर देवस्त्रियों की अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये । तथा पचपन पल्योपम की उत्कृष्ट स्थिति का कथन ईशान देवस्त्रियों की अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये । इस प्रकार सामान्य से देवस्त्रियों की स्थिति का काल प्रकट करके अब सूत्रकार विशेष रूप से भिन्न भिन्न देवस्त्रियों की स्थितिकाल प्रकट करते हैं - इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा हैं "भवणवासि देवित्थीणं भंते केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता" हे भदन्त ! भवनवासी देवस्त्रियों की स्थिति का काल कितना कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - " गोयमा ! जहन्नेणं
हे
ठिई पण्णत्ता" हे भगवन् हेवांगनानी स्थिति डेंटला अजनी हेवामां भावी छे ? मा પ્રમાણે ને આ પ્રશ્ન સામાન્ય પણાથી દેવાંગનાની સ્થિતિના સબંધમાં પૂછેલ છે. આ પ્રશ્નના उत्तरभां प्रभु गौतम स्वामीने हे छे – “गोयमाः ! जहण्णेणं दसवास सहरसाई' उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओ माई” हे गौतम! धन्यथी तेथोनी स्थिति दृश इन्तर वर्षांनी अहेवामां આવી છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી (૫૫) પોંચાવન પલ્ચાપમની કહેલ છે. જઘન્યથી દશ હજાર વર્ષોંની સ્થિતિનું કથન ભવનપતિ અને વ્યંતરદેવ સ્ત્રાની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવેલ છે. તેમ સમજવું. તથા (૫૫) પંચાવન પધ્યેાપમની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિનું કથન ઈશાન દેવસ્ત્રિયાની અપક્ષાથી કહેવામાં આવ્યુ છે તેમ સમજવું. આરીતે સામાન્ય પણાથી દેવાંગનાના સ્થિતિકાળ બતાવીને હવે સૂત્રકાર વિશેષ પણાથી જૂદી જૂદી દેવસ્ત્રિયેાના સ્થિતિ કાલને બતાવે छे. सभां गौतमस्वामी अलुने येवु पूछयु छे - “भवणवासिदेवित्थीणं भंते केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" हे भगवन् भवनवासी हेवीयोनी स्थितिठाण डेटा हेवामां आवे छे? या
જીવાભિગમસૂત્ર