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प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २
स्त्रीणां भवस्थितिमाननिरूपणम् ३८१ कोटिप्रमाणोत्कर्षतः स्थितिर्भवति जलचरीणामिति । 'चउप्पयथलयर तिरिक्खजोणित्थीणं भंते' चतुष्पदस्थलचरतिर्यग्योनिकस्त्रीणां भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता - कथितेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहा तिरिक्खजोणित्थीओ' यथा तिर्यग्योनिकस्त्रीणां स्थिति स्तेनैव रूपेण चतुष्पदस्थलचरीणामपि स्थिति ज्ञतव्या जघन्येनान्तर्मुहूर्तप्रमाणा उत्कर्षतस्त्रीणि पल्योपमानीत्यर्थः । ' उरः परिसप्पथलयर तिरिक्खजोणित्थीणं भते ! उरःपरिसर्पस्थलचरतिर्यग्योनिकस्त्रीणां भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्तः - कथितेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! जहन्नेणं अतो मुहुत्त" जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं पुव्वकोडी' उत्कर्षेण पूर्वकोटिः, पूर्व कोटिप्रमाणा उत्कर्षत: स्थिति र्भवति उरः परिसर्पस्थलचरीणामित्यर्थः । ' एवं भुयपरिसप्प०' एवम् उरः परिसर्पस्थलचरीणामिव पुथ्वकोडी हे गौतम! जधन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि की इनकी भवस्थिति कही गई हैं। “चउप्पयथलयर तिरिक्खजोणित्थीण भंते !" हे भदन्त ! चतुष्पद स्थलचर तिर्यग्योनिक स्त्रियों की भवस्थिति कितने काल की कही गई हैं ! 'गोयमा ! जहा तिरिक्खजोणित्थीओ' हे गौतम ! जैसी भवस्थिति समुच्चय तिर्यग्योनिकस्त्रियों की जधन्य से अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की कही गई हैं - वही भवस्थिति चतुष्पद स्थलचर तिर्यग्योनिक स्त्रियों की होती है ऐसा जानना चाहिये "उरपरिसप्पथलयर तिरिक्खजोणित्थीणं भंते केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता” हे भदन्त ! उरः परिसर्प स्थलचर तिर्यग्योनिक स्त्रियों की कितने काल की भवस्थिति कही गई हैं ? 'गोयमा जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी' गौतम ? जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि की इनकी भवस्थिति कही गई हैं। ' एवं भुपरिसप्प ० ' उरः परिसर्पस्थलचर स्त्रियों की भवस्थिति जैसी कही गई हैं।
कोडी” हे गौतम ! ४धन्यथी मे अंतर्मुहूर्तनी भने उत्कृष्टथी येऊ पूर्व अटि म प्रभाऐनी लवस्थिति वामां आवी छे. "चउप्पयथलयर तिरिक्खजोणित्थीणं भंते!" हे भगवन् यतुष्यह स्थलयर तिर्यग्योनिङ स्त्रियोनी लवस्थिति डेंटला अणनी आहेस छे. “गोयमा ! जहा तिरिक्खजोणित्थीओ હે ગૌતમ ! જે પ્રમાણેની ભવસ્થિતિ समुय्यय तिर्यग्याનિક સ્ત્રિયાની જઘન્યથી અંતર્મુહૂતની અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પલ્યાપમની કહી છે, એજ प्रभाऐनी लवस्थितियतुष्यः स्थसयर तिर्यग्योनि स्त्रियोनी छे, तेभ समभ्वु " उरपरिसप्प थलयतिरिक्त्र जोणित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" हे भगवन् ! २ः परिसर्प स्थायर तिर्यग्योनि स्त्रियोनी लवस्थिति डेटा अजनी अहेवामां आवे छे ? "गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी" हे गौतम ! धन्यथी मे अतर्मुहूर्तनी भने उत्कृष्टथी ये पूर्व अटिनी तेयोनी लवस्थिति उडेवामां आवी छे. ' एवं भुयपरि
જીવાભિગમસૂત્ર