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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २. त्रिविधप्रतिपत्तिनिरूपणम् ३७१ यति-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा 'भवणवासिदेवित्थीओ' भवनवासिदेवस्त्रियः 'वाणमंतरदेविस्थीयो' वानव्यन्तरदेवस्त्रियः, 'जोइसियदेवित्थीओ' ज्योतिष्कदेवस्त्रियः, 'वेमाणियदेवित्थीओ' वैमानिकदेव स्त्रियः तथा च भवनवासिन्यो वानव्यन्तों ज्योतिष्क्यो वमानिक्यश्चतस्रो देवस्त्रियो भवन्तीति । तत्र प्रथमोपात्ताः भवनवासिदेवस्त्रीः निरूपयितुमाह'स किं तं भवणवासिदेवित्थीओ' अथ कास्ताः भवनवासिदेवस्त्रियः भवनासिदेवस्त्रीणां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः उत्तरयति-'भवणवासिदेवित्थीओ दसविहा पन्नत्ता' भवनवासिदेवस्त्रियः दशविधाः दशप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः-कथिता प्रकारभेदमेव दर्शयति-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा'तद्यथा- 'असुरकुमार भवणवासिदेवित्थीओ जाव थणियकुमारभवणवासिदेवित्थीओ' असुर कुमारभवनवासिदेवस्त्रियो यावत्स्तनितकुमारभवनवासिदेवस्त्रियः, अत्र यावत्पदेन नागकुमारादीनां संग्रहः तथा च भवनवासिदेवानां दशविधत्वात् ते एते दशविधा:-असुर नाग सुवर्ण-विधुदग्नि देवित्थीओ" भवनवासी देवस्त्रियां, वानव्यन्तर देवस्त्रियां, ज्योतिष्य देवस्त्रियां और वैमानिक देवस्त्रियां । “से किं तं भवणवासिदेवित्थीयो" हे भदन्त ? भवनवासी देवस्त्रियों के कितने भेद हैं। गौतम ! "भवणवासिदेवित्थीओ दसविहा पण्णत्ता" भवनवासि देवों के १० भेद होने से उनकी स्त्रियों के भी दशभेद हैं । "तं जहा" जो इस प्रकार से हैं। "असुरकुमारभवणवासिदेवित्थीओ जाव थणियकुमारभवणवासिदेविस्थीओ” असुरकुमार भवनवासि देवस्त्रियां यावत् स्तनितकुमार भवनवासि देव स्त्रियां । यहाँ यावत्पद से अन्य समस्त भव नवासी देवों के भेद दस हैं जो इस प्रकार से है-भवनवासी देवों की स्त्रियों का संग्रह हुआ है। जैसे-के असुरकुमार तो मूल में ही कह दिये गये हैं, और दसवां स्तनितकुमार भी सूत्रपाठ में कह दिये हैं बाकी के आठ नाम इस प्रकार से हैं-नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, छ १ "गोयमा ! देवित्थीओ चउम्विहा पण्णत्ता" उ गीतम ! हेवनी लियो यार प्रानी ही छे, "तं जहा" ते या२ २ मा प्रभाए छ.- "भवणवासिदेवित्थीओ, बाणमन्तरदेवित्थीओ, जोइसियदेविस्थीओ वेमाणियदेवित्थीओ" सवनवासी पनी खिये। पानच्यन्त देवनी लियो, ज्योति हेवनी स्त्रियो मन वैमानि यानी खियो “से किं तं भवणवासिदेवित्थीओ" भगवन् नवनवासी वनी लियोना टसा हो डसा छ ? "गोयमा ! भवणवासिदेवित्थीओ दसविहा पण्णत्ता" : गौतम ! सनवासी हेवा इस प्रा२ना पाथी यानी खियाना ५४ ४स ले ४॥ छे. तं जहा" ते २मा प्रमाणे छे. "असुरकुमारभवणवासिदेवित्थीओ जाव थणियकुमारभवणवासिदेवित्थीओ" असुर કુમાર ભવનવાસિ દેવની સ્વિયે યાવતું સ્તનતકુમાર ભવનવાસી દેવની સ્ત્રિ. અહિં યાવ૫દથી બાકીના સઘળા ભવનવાસી દેવાની સ્ત્રિને સંગ્રહ થયે છે. ભવનવાસી દે દસ પ્રકારના છે. જે આ પ્રમાણે છે.–અસુર કે જે મૂલમાંજ કહેલ છે. અને દસમાં સ્વનિ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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