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________________ ३४६ जीवाभिगमसूत्रे - स्थितिद्वारे- - 'ठिई जहन्नेणं दसवाससहस्साई' देवानां स्थिति :-- आयुष्यकालो जघन्येन दशवर्षसहस्राणि 'उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' उत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि जधन्योत्कर्षाभ्यां स्थितिर्दशवर्षसहस्रप्रमाणा त्रयस्त्रिंशत्सागरप्रमाणा चेत्यर्थः, इति स्थितिद्वारम् ॥ समवहतद्वारे 'दुविहा वि मरंति' द्विविधा अपि म्रियन्ते मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहता अपि असमवहता अपि इति भावः ॥ इति समवहतद्वारम् ॥ उद्वर्तनाद्वारे – 'उच्चट्टिता नो नेरइएस गच्छति' इमे देवाः देवेभ्य उद्वृत्य नो नैरयिकेषु गच्छन्ति, किन्तु 'तिरियमणुस्सेसु जहासंभवं' तिर्यङ्मनुष्येषु यथासंभवं गच्छन्ति देवाः, 'नो देवेसु गच्छति' नो-न वा देवेषु गच्छन्ति, अयं भावःवः - देवा देवेभ्य उद्धृत्य यथासंभवं तिर्यक्षु मनुष्येष्वेव गच्छन्ति न तु नैरयिकेषु वेति, देवेषु वेति उद्वर्तनाद्वारम् ॥ गत्या गतिद्वारे - 'दुगइया दुआगइया' द्विगतिका द्वयागतिका: तिर्यङ्मनुष्येष्वेव गमनात् द्विगतिकाः, तिर्यग्भ्यो मनुष्येभ्यश्चागमनात् द्वयागतिकाः भवन्ति देवाः । ' परित्ता असं स्थितिद्वार में - "ठिई जहन्नेणं दसवाससहस्सा ई" इनकी स्थिति जघन्य से दश हजार वर्ष की होती है और "उनको सेणं तेत्तीस सागरोवमाई" उत्कृष्ट से तेतीस सागरोपम की होती है । समवहतद्वार में - "दुविहा वि मरंति" ये मारणान्तिक समुद्घात् से समवहतहोकर भी मरते हैं, समवहत नहीं होकर भी मरते हैं, "उध्वट्टित्ता नो नेरइएसु गच्छंति" उद्वर्त्तनाद्वार में ये देव, देव पर्यायसे उद्वृत्त होकर नैरयिकों में नहीं जाते हैं किन्तु " तिरियमणुस्से जहासंभवं " किन्तु यथासंभव तिर्यञ्च और मनुष्यों में जाते हैं । "नो देवेसु गच्छंति" देव मरकर देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं 1 तात्पर्य यह है कि- देव मरकर यथासंभव मनुष्य और तिर्यञ्चों में हो उत्पन्न होते हैं नैरयिक एवं देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं । गत्यागतिद्वार में ये देव " दुगइया दुआगइया " द्विगतिक होते हैं और द्वयागतिक होते हैं अर्थात् दो गति से आते हैं और द्वारभां "ठिई जहण्णेणं दसवास सहस्साई” तेमोनी स्थिति धन्यथी इस इन्नर वर्षांनी होय छे भने “उक्कोसेणं तेतीसं सागरोवमाइ उत्सृष्टथी तेत्रीस 33 सायशेषभनी होय छे सभवहुत द्वारभां - "दुविहा वि मरंति” तेथेो भारशान्ति समुद्दधातथी सभवडत अर्ध ने भरे छे, मने सभवहुत थया विना पशु भरे छे. “उव्वट्टित्ता नो नेरइसु गच्छेति" उद्वर्तना द्वारभां थे हेव, देवपर्यायथी वृत्त थाने भेटले ! हेवपणा भांथी નીકળીને નૈરિયકેમાં જતા नथी, परंतु " तिरियमणुस्सेसु जहासंभवं " यथासंभव तिर्यय : मने मनुष्याभां लय छे. "नो देवेसु गच्छंति" देव भरीने हेवामां उत्पन्न થતા નથી, કહેવાનું તાત્પય એ છે કે—દેવ મરીને યથાસંભવ મનુષ્યા અને તિય ચામાં જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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