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________________ ३४४ जीवाभिगमसूत्रे अयं च द्वज्ञानिनश्च त्र्यज्ञानिनश्चेति विकल्पः असमिध्याद् ये देवा उत्पद्यन्ते तान् आश्रित्य ज्ञातव्यम् इति ज्ञानद्वारम् || योगद्वारे - 'तिविहे जोगे' त्रिविधो योग: देवानां मनोवचनकायात्मकस्त्रिप्रकारकोऽपि योगो भवतीति योगद्वारम् || उपयोगद्वारे - 'दुविहे उवजोगे' द्विविध उपयोगः, देवानां साकारोपयोगश्च भवति तथाऽनाकारोपयोगश्चापि भवतीत्युपयोगद्वारम् || आहारद्वारे - ' आहारो णियमा छद्दिसिं देवानामाहारो नियमात् षदिशि, लोकमध्येऽवस्थानात् । ' ओसन्नं कारणं पडुच्च वण्णओ हालिद्दसुकिल्लाई जाव आहारमाहरेति' ओसन्नं प्रायः कारणं प्रतीत्य-प्रायशः कारणमाश्रित्य वर्णतो हारिद्रशुक्लान् आहारपुद्गलान् यावदाहारमा हरन्ति देवाः यावत्पदेन - गंधओ सुब्भिगंधाई, रसओ अंबिलमहुराई फासओ मउय इनमें कितनेक दो अज्ञानवाले और कितनेक तीन अज्ञान वाले होते हैं । इनमें जो दो अज्ञानवाले हैं वे नियम से मत्यज्ञान श्रुतज्ञान वाले होते हैं । और जो तीन अज्ञान वाले होते हैं वे नियम से मत्यज्ञान वाले श्रुत अज्ञान वाले और विभंगज्ञान वाले होते हैं। ऐसा यह जो अज्ञानी होने का दो प्रकार का विकल्प है वह जो देव असंज्ञियों में से आकर के उत्पन्न होते हैं उनकी अपेक्षा से हैं। योग द्वार में - "तिविहे जोगे" इनके मनोयोग वचनयोग और काययोग ऐसे तीनों योग होते हैं । उपयोग द्वार में - ' ' दुविहे उवजोगे" इनको दोनों प्रकार का उपयोग होता है । साकार उपयोग भी होता है और अनाकार उपयोग भी होता है आहार द्वार में - " आहारो नियमा छद्दिसिं" इनका आहार नियम से लोक के मध्य में इन्हें स्थित होने के कारण छहों दिशाओं में से आगत पुद्गलों का होता है । " ओसन्नं कारणं पडुच्च वण्णओं हालिद्दसुविकल्लाई जान आहारमाहरेंति प्रायः कारण को लेकर ये वर्णकी अपेक्षा हारिद्रवर्ण वाले शुक्ल वर्ण वाले पुद्गलों का હાય છે. તેઓ મતિ અજ્ઞાન અને શ્રુત અજ્ઞાન વાળા હોય છે, અને જેએ ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હાય છે, તે મતિ અજ્ઞાનવાળા શ્રુત અજ્ઞાન વાળા અને વિભંગ જ્ઞાન વાળા હાય છે. એવી રીતે અજ્ઞાની હાવાના સમધમાં જે આ એ પ્રકાશને વિકલ્પ છે, તે જે દેવ અસનિયાभांथी भावीने उत्पन्न थाय छे, तेथोनी अपेक्षाथी उडेल छे योगद्वारमा - “तिविहे जोगे" તેઓને મનાયેાગ, વચનચૈાગ, અને કાય ચૈાગ, એવા ત્રણે ચેગ હાય છે. ઉપયાગદ્વારમાં" दुविहे उवजोगे" तेयोमा साझर उपयोग भने अनार उपयोग खेभ योग होय छे. माहारद्वारभां - "आहारो नियमा छद्दिसिं” तेखाना माहार नियमशी લેાકની મધ્યમાં તેએ રહેલા હોવાથી છ એ દિશાઓમાંથી આવેલા પુદ્ગલાના હોય છે. "ओसन्नं कारणं पच्च वण्णओ हालिद्दसुकिल्लाई जाव आहारमाहरेंति" आयः अरणने લઈ ને તેએ વર્ણની અપેક્ષા હાલિદ્ર-કહેતાં પીળા વર્ણવાળા, શુકલ વણવાળા પુદ્દગલાને આહાર કરે છે. અહિયાં યાવપદથી જે પાઠના સંગ્રહ થાય છે, તે પાઠ ટીકામાં બતાવ્યે अहारना 64 જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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