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________________ जीवाभिगमसूत्रे द्वीपकासं स्यातवर्षायु'कवर्जे यो मनुष्येभ्य एव भवतीति । 'देवेहि सव्वेहि' देवेभ्यः सर्वेभ्यः, यदि देवेभ्य उपपातो भवति मनुष्याणां तदा सर्वदेवेभ्योऽनुत्तरोपपातिकदेवपर्यन्तेभ्यो भवतीत्युपपातद्वारम् ॥ ___ स्थितिद्वारे—'ठिई जहन्नेणं अंतो मुहुत्त' मनुष्याणां स्थितिः-आयुष्यकालो जधन्येन अन्तर्मुहूर्तप्रमाणा भवति, 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई' उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि-त्रिपल्योपमप्रमाणा स्थिति भवतीति स्थितिद्वारम् ॥ 'दुविहा वि मरंति' समुद्धातमधिकृत्य मरणचिन्तायां मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहता अपि म्रियन्ते असमवहता अपि म्रियन्ते । ___ उद्वर्तनाद्वारे- 'उव्वहिता नेरइयादिसु जाव अणुत्तरोववाइएसु' अनन्तरमुद्वृत्य नैरयिकादिषु, यावदनुत्तरोपपातिकेषु । इत उदृत्य सर्वेषु नैरयिकेषु सर्वेषु तिर्यग् योनिकेषु सर्वेषु मनुष्येषु सर्वेषु देवेषु अनुत्तरोपपातिकपर्यवसानेषु गच्छन्तीत्यर्थः, 'अत्थेगइया इनका उत्पाद होता है। "देवेहिं सव्वे हिं" यदि देवों में से इनका उत्पाद होता है तो समस्त देवों में से इनका उत्पाद होता है स्थितिद्वार में-इन गर्भज मनुष्यों की स्थिति "जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई" जधन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की है समवहत द्वार से ये गर्भज मनुष्य "दुविहा वि मरंति" मारणान्तिक समुद्धात से समवहत होकर भी मरते हैं, और मारणान्तिक समुद्धात से नहीं समवहत होकर भी मरते हैं । उद्वर्तन निकलना द्वार में-ये गर्भज मनुष्य "उव्वट्टित्ता नेरइयादिसु जाव अणुत्तरोववाइएसु" जब अपनी पर्याय को छोड़कर परगति में जन्म धारण करते हैं तो ये नरकों में भी जन्म धारण कर सकते हैं समस्त तिर्यग्योनिकों में भी जन्म धारण कर सकते हैं, सर्व मनुष्यो में भी जन्म धारण कर सकते हैं और अनुत्तरोपपात्तिक के समस्तदेवो में भी जन्म धारण "देवेहिं सव्वेहि" तमनी उत्पत्ति हेवामाथी . थाय छे, तो सणावोमांथी तमानी ઉત્પત્તિ થાય છે. - स्थितिवाभा- भाग भनुष्यनी स्थिति “जहण्णेणं अंतो मुहुत उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई' ४धन्यथी मे अतभुइतनी छे, अन टया ३ ५त्योभनी छे. समवतारमा-2मा गम मनुष्य "दुविहा वि मरंति" भान्ति समुधातथी સમવહત થઈને એટલેકે આઘાત પ્રાપ્ત કરીને પણ મરે છે. અને મારણાનિક સમુદ્દઘાતથી સમવહત થયા વિના એટલેકે આઘાત પ્રાપ્ત કર્યા વિના પણ મરે છે. ઉદ્વર્તનદ્વારમાં–આ ગર્ભજ मनुष्य "उवट्टिता नेरइपसु जाव अणुत्तरोववाइपसु" या पोतानी पर्यायन छोडीन अन्य ગતિમાં જન્મ ધારણ કરે છે, તે તેઓ નારકામાં પણ જન્મ ધારણ કરે છે, સઘળા તિય નિકેમાં પણ જન્મ ધારણ કરી શકે છે. સર્વ મનુષ્યમાં પણ જન્મ ધારણ કરી શકે છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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