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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ नैरयिकेभ्य उपपातो भवति तदा सप्तमनरकवर्जेभ्य एव भवति, तदुक्तम्'सत्तममहिने रइया, तेऊवाऊ अनंतरुव्वट्टा | नवि पावे माणुस्सं तहेव असंखेज्जवासाज्या सव्वे ॥ सप्तममहीनैरयिकाः तेजस्कायिका वायुकायिका अनन्तरोवृत्ता । नैव प्राप्नुवन्ति मानुष्यं तथैवासंख्येयवर्षायुष्का सर्वे ॥ इतिच्छाया यदि मनुष्याणामुपपातस्ति । योनिकेभ्यो भवति 'तिरिक्खजोणिए हिंतो उववाओ' तिर्यग्योनिकेभ्यो मनुष्याणामुपपातस्तदा- 'असंखेज्जवासाउयवज्जेहिं' असंख्येय वर्षायुष्क बर्जेभ्य एव तिर्यग्योनिकेभ्यो भवतीति । ' मणुस्सेर्हि अकम्मभूमगअंतरदीवगअसंखेज्जवासाउयवज्जेहिं' यदि मनुष्येभ्य एव उपपातो भवति मनुष्याणां तदा-अकर्मभूम कान्तरइनका उत्पाद नहीं होता है- क्योंकि सातवीं नरक का नारकी मरकर नियम से तिर्यञ्च की पर्याय में जन्म लेता है सोही कहा - "सत्तममहिनेरइया" इत्यादि । सातवीं नरक का नारकी तथा तेजस्कायिक एवं वायुकायिक मरकर मनुष्य नहीं होता है तथा असंख्यात वर्ष की आयुवाले मनुष्य एवं तिर्यञ्च भी मनुष्य गति में उत्पन्न नहीं होते हैं यदि “तिरिक्खजोणिएहिंतो उववाओ” मनुष्यों का उत्पाद तिर्यग्योनिक जीवों में से होता है तो "असंखेज्जवासाऊयवज्जेर्हि" असंख्यात वर्ष की आयुवाले भोग भूमिया तिर्यग् जीवों में से नहीं होता है क्योंकि ये जीव सब मरकर देव गति में ही जन्म लेते हैं बाकी के तिर्यग्योनिक जीवों में से इनका उत्पाद होता है 'मणुस्सेहि" यदि मनुष्यों में से इनका उत्पाद होता है तो असंख्यात वर्ष की आयुवाले अकर्मभूमि भोग भूमि के मनुष्यों में से एवं अन्तर द्वीप मनुष्यों में से इनका उत्पाद नहीं होता है केवल कर्मभूमिज मनुष्यों में से કાના નૈરિયકામાંથી થાય છે. એટલેકે સાતમી નરકના નૈયિકા માંથી તેએની ઉત્પત્તિ મનુષ્યમાં થતી નથી. કેમકે-સાતમી નરકના નારકીયા મરીને નિયમથી તિચ નીપર્યાય भन्छे ४ धुं छे - "सतममहिनेरइया" इत्याहि. સાતમા નરકના નારકી તથા તેજસ્કાયિક અને વાયુકાયિક એ ત્રણ મરીને મનુષ્ય થતા નથી, તથા અસખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા મનુષ્ય અને તિય ́ચ પણ મનુષ્ય ગતિમાં उत्पन्न थता नथी. ले “तिरिक्खजोणिएहिंतो उववाओ” भनुष्योनी उत्पत्ति तिर्यग्योनि वाणा वामांथी थाय तो "असंखेज्जवासाउयवज्जेहिं" असंख्यात वर्षानी आयुष्यवाणा ભાગભૂમિયા તિયગ્ જીવામાંથી થતી નથી. કેમકે-એ જીવામરીને દેવગતિમાં જ જન્મ લે છે. એટલે કે-તેશિવાયના ખાકીના તિય ચૈાનિવાળા જીવેામાંથી તેમની ઉત્પત્તિ થાય છે "मनुस्सेहिं” ने मनुष्ये। भांथी तेभनो उत्पाद - उत्पत्ति थाय तो असंख्यात वर्षांनी आयुષ્યવાળા અકમ ભૂમિ ભાગભૂમિના મનુષ્યમાંથી તથા આંતરદ્વીપજ મનુષ્યમાંથી તેમના ઉત્પાદ-ઉત્પત્તિ થતા નથી, કેવળ ક ભૂમિવાળા મનુષ્યમાંથી તેએ ની ઉત્પત્તિ થાય છે. ४२ गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य निरूपणम् ३२९ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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