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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यनिरूपणम् ३२७ ज्ञानदर्शनचारित्रप्रभावेण निःशेषावरणप्रणाशावशेषदेशज्ञानव्यवच्छेद रूपाऽपि परिस्फुटा सकलवस्तुपर्यायप्रपञ्चस्य हस्तामलकवत् साक्षात्कारिणी विज्ञप्तिरुद्भवति । अति परिस्फुटैकरूपाभिव्यक्तित्वेनैव-(एकज्ञानिनः) इत्युक्तम् । तदुक्तम्---- 'यथा जात्यस्य रत्नस्य निःशेषमलहानितः। ___ स्फुटकरूपाऽभिव्यक्ति विज्ञप्ति स्तद्वदात्मनः ॥१॥ इति ॥ ‘एवं अन्नाणी' एवं ज्ञानिवदेव अज्ञानिनोऽपि 'दु अन्नाणी ति अन्नाणी' द्वयज्ञानिन घ्यज्ञानिनः, तत्र ये द्वन्यज्ञानिन स्ते नियमतो मत्यज्ञानिनः श्रुताज्ञानिनश्च भवन्ति ये तु व्य ज्ञानिनस्ते मत्यज्ञानिनः श्रुताज्ञानिनो विभङ्गज्ञानिनश्च भवन्तीति ।। योगद्वारे--'मणजोगी वि वयजोगी वि कायजोगी वि अजोगी वि' इमे मनुष्या से ज्ञानदर्शन चारित्र और तप रूप रत्न चतुष्टय के प्रभाव से जब सम्पूर्ण आवरण का विनाश हो जाता है तब बाकी के पदार्थ के एकदेश को जानने वाले मत्यादि ज्ञानों का व्यवच्छेद विलीनीकरण-हो जाता है-इससे अति परिस्फुट और सकलवस्तु पर्याय प्रकाशक विज्ञप्ति-ज्ञानकैवल्य-उद्भूत हो जाती है। जैसे कहा है--- "यथा जात्यस्य रत्नस्य" इत्यादि । _ एवं अन्नाणी" गर्भज मनुष्य जिस प्रकार ज्ञानी होते कहे गये हैं उसी प्रकार वे अज्ञानी भी होते हैं । "दु अन्नाणी ति अन्नाणी" ये दो अज्ञानवाले भी होते हैं और तीन अज्ञानवाले भी होते हैं । जो दो अज्ञानवाले होते हैं वे नियम से मति अज्ञानवाले और श्रुतअज्ञान वाले होते है और जो तीन अज्ञानवाले होते हैं वे मति अज्ञानवाले, श्रुत अज्ञानवाले और विभंगज्ञानवाले होते हैं । योगद्वार में -ये गर्भज मनुष्य "मणजोगी वि, वयजोगी वि, काय जोगी वि, अजोगी वि" मनोयोगी भी होते हैं, वचन योगी भी होते हैं और काय योगी भी होते हैं तथा થાય છે. એ જ પ્રમાણે જ્ઞાનદશન ચારિત્ર અને પરૂપ રત્નચતુષ્ટયના પ્રભાવથી જ્યારે સંપૂર્ણ આવરણને નાશ થઈ જાય છે, ત્યારે બાકીના પદાર્થના એક દેશને જાણનારા મત્યાદિ જ્ઞાનેને વ્યવરે છેદ-વિલીનીકરણ થઈ જાય છે. તેથી અત્યંત શુદ્ધ અને સકલવસ્તુ પર્યાયને प्रश४२ना२ विज्ञति-ज्ञान अर्थात ज्ञान उत्पन्न तय छ. म स छ-"यथा जात्यस्य रत्नस्य" इत्यादि “एवं अन्नाणी' हे प्रमाणे म मनुष्यने ज्ञानी डावानुयु छ, मे प्रभारी तसा मज्ञानी५५५ डाय छे. "दुअन्नाणी ति अन्नाणी" तेसा मे अज्ञानवाणा ५५ हाय छे, અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા પણ હોય છે. જેઓ બે અજ્ઞાનવાળા હોય છે, તેઓ નિયમથી મતિઅજ્ઞાનવાળા અને શ્રુત અજ્ઞાનવાળા હોય છે. અને જેઓ ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હોય છે. તેઓ મતિ અજ્ઞાન, શ્રત અજ્ઞાન, અને વિભંગ જ્ઞાનવાળા હોય છે. योगाभा-मामी भनुष्य "मणजोगी वि वयजोगी वि, कायजोगी वि अजोगी વિ” મનેગવાળા પણ હોય છે, વચનયોગવાળા પણ હોય છે. અને કાયયોગવાળા પણ જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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