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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यनिरूपणम् ३२३ दर्शनद्वारे - 'चत्तारि दंसणा' मनुष्याणां चत्वारि दर्शनानि भवन्ति तद्यथा-चक्षुर्दर्शनिनः, अचक्षुर्दर्शनिनः, अवधिदर्शनिनः, केवलदर्शनिनस्ते भवन्तीति दर्शनद्वारम् ॥ ज्ञानद्वारे—णाणी वि अन्नाणी वि' मनुष्या ज्ञानिनोऽपि भवन्ति अज्ञानिनोऽपि भवन्तीति । 'जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी' तत्र ये मनुष्या ज्ञानिनस्ते अस्त्येकके द्विज्ञानिनः, 'अत्थेगइया तिण्णाणी' अस्त्येकके त्रिज्ञानिनः, 'अत्थेगइया चउण्णाणी' अस्त्येकके चतुर्मानिनः, 'अत्थेगइया एगणाणी' अस्त्येकके एकज्ञानिनः । 'जे दुण्णाणी' तत्र खलु ये द्विज्ञानिनः 'ते नियमा आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी य' ये द्विज्ञानिनो मनुष्यास्ते नियमात् आभिनिबोधिकज्ञानिनः श्रुतज्ञानिनश्च भवन्तीति 'जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी तत्र खलु ये मनुष्या स्त्रिज्ञानिनो ज्ञानत्रयवन्तस्ते नियमतः आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञा निनोऽवधिज्ञानिनश्च भवन्ति, 'अहवा आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी मणपज्जवनाणी य' अथवा हैं। दर्शनद्वार में ये गर्भज मनुष्य-"चत्तारि दसणा” चार दर्शन चक्षुर्दशनवाले भी होते हैं अचक्षुदर्शनवाले भी होते हैं, अवधिदर्शनवाले भी होते हैं । और केवलदर्शनवाले भी होते हैं। ज्ञानद्वार में ये गर्भज मनुष्य "णाणी वि अन्नाणी बि" ज्ञानी भी होते हैं, और अज्ञानी भी होते हैं । “जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी" यदि ये ज्ञानी होते हैं । तो इनमें कितनेक दो ज्ञानवाले होते हैं कितनेक "तिण्णाणी” तीन ज्ञानवाले होते हैं "अत्थेगइया चउणाणी" कितनेक चार ज्ञानवाले होते हैं "अत्थेगइया एगणाणी" और कितनेक एक ज्ञानवाले होते हैं। इनमें जो "दुण्णाणी" दो ज्ञानवाले होते हैं वे नियम से आभिनिबोधिक ज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं "जे तिण्णाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी ओहिनाणी" जो तीन ज्ञान वाले होते हैं वे आभिनिबोधिक ज्ञानवाले श्रुतज्ञानवाले और अवधिज्ञानवाले होते हैं। 'अहवा-'आभिणिवोहियनाणो. सुयणाणी. मणपज्जवनाणी' अथवा आ भेनिबोधिक ज्ञानवाले ४श नामां म म मनुष्य-"चत्तारि दंसणा” यक्षुश नपा ५४ डाय छ, અચક્ષુદર્શનવાળા પણ હોય છે, અને અવધિદશનવાળા પણ હોય છે. જ્ઞાનદ્વારમાં આ राम मनुष्यो-“णाणी वि अन्नाणी वि" ज्ञानी ५९५ उय छ, भने मज्ञानी या हाय छ. 'जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी" तेयाम ज्ञानी हाय छे तमां डेटा में ज्ञानवापी मन मा “तिन्नाणी" त्र ज्ञानवा डाय छे. “अत्थेगइया च उनाणी" तथा सा यार ज्ञानवा डाय छे. मने "अत्थेगइया एगनाणी' टखा से ज्ञानवाणा डाय छे. अन तमामा मा "दुण्णाणो" में शानदार डाय छ, तेसो नियमयी मानिनिमाथि ज्ञानवाणा भने श्रवज्ञानवाणाय छ, “जे तिन्नाणी ते आभिणिवोहियनाणी. सुयनाणी, ओहिनाणी" या त्र ज्ञानवाणा हाय छे. तसे। मानिनिमाधि४ ज्ञानवाणा, श्रुतज्ञानवाणा, मन अवधि शानवा डाय छे. “अहवा-आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, मणपज्जवनाणी" 1241 मानिनिमाधि ज्ञानव श्रुतज्ञानवा भने मन:पय. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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