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________________ २७८ जीवाभिगमसूत्रे पत्तव्याः, 'ते समासओ दुविहा पन्नत्ता' ते मत्स्यादयः समासतः-संक्षेपेण द्विविधाःद्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ता:- कथिताः । 'तं जहा' तद्यथा 'पज्जत्ता य अपज्जत्ता य' पर्याप्ताश्च अपर्याप्ताश्च ॥ गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरजीवानां शरीरादिद्वारजातं दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह-'तेसि णं भंते' इत्यादि, 'तेसि णं भंते ? जीवाणं' तेषां गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचराणां खलु भदन्त ! मत्स्यादिजीवानाम् 'कइ सरीरगा पन्नत्ता' कति–कियत्संख्यकानि शरीराणि प्रज्ञप्तानिइति प्रश्न ? भगवानाह- 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! चत्तारि सरीरगा पन्नत्ता चत्वारि शरीराणि प्रज्ञप्तानि कथितानि, “तं जहा' तद्यथा-'ओरालिए वेउविए तेयए कम्मए' औदारिकं वैक्रियं गर्भव्युत्क्रान्तिकानां वैक्रियशरीरस्यापि संभवात् , तैजसं कार्मणं चेति चत्वारि शरीराणि भवन्तीति १। दविहा पन्नत्ता" संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं "तं जहा" जैसे-"पज्जत्ता य अपज्जत्ता य" पर्याप्तगर्भजजलचर और अपर्याप्त गर्भज जलचर । जिनके अपनी २ योग्य पर्याप्तियां पूर्ण हो जाती है वे पर्याप्त और जिनके कोई भी पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती है वे अपर्याप्त कहलाते हैं । इनके शरीरादि द्वारों को जानने के लिये गौतम प्रभु से पूछते हैं"तेसि णं भंते जीवाणं कइ सरीरगा पण्णत्ता ?" हे भदन्त ! इन गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर जीवों के कितने शरीर होते हैं । भगवान् कहते हैं-"गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता" इन गर्भज जलचर जीवों के चार शरीर कहे गये हैं-"तं जहा" जैसे-“ओरालिए, बेउविए तेयए, कम्मए" औदारिक, वैक्रिय तैजस और कार्मण गर्भज स्थलचर जीवों के वैक्रिय शरीर भी संभवित हो सकता है। इसलिए यहां वैक्रिय शरीर को लेकर चार शरीर प्रकट “समासओ दुविहा पण्णत्ता" सोपथी मे १२॥ ४॥ छ. तं जहा" २ मे ॥२॥ माप्रमाणे छे. "पज्जत्ता य अपज्जत्ता य” पर्यात ४ सय२ अने. २५५यति गर्म જલચર જેને પિત પિતાની યોગ્ય પર્યાપ્તિ પૂર્ણ થઈ જાય છે તેઓ પર્યાપ્ત કહેવાય છે, અને જેઓને પર્યાપ્તિ પૂર્ણ હોતી નથી. તેઓ અપર્યાપ્ત કહેવાય છે. હવે તેના શરીર विगैरे दाने पशुवा माटे गौतमस्वामी प्रभु ने पूछे छे ,-"तेसि णं भंते ! जीवाणं कइसरोरगा पण्णत्ता" है मगवन् २मा शर्मव्युतिs areA२ वान टवा शरी२। हाय छ ? ॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभु हे छ -“गोयमा! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता" मा Horसयरवाने या२ शरीरे। ४ा छे. "तं जहा" ते मी प्रमाणे छे. “ओरा लिए, वेउविए, तेयए, कम्मए,” मौ२ि४, वैयि, तेस, मने भए, न ४ स्थसयर જીને વૈક્રિયશરીર પણ સંભવી શકે છે. તેથી અહિયાં કિય શરીરને લઈને ચાર શરીરે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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