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________________ २३४ जीवाभिगमसूत्रे पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकजीवाः नोसंज्ञिनो भवन्ति संमूछिमतया समनस्कत्वाभावात् अपितु असंज्ञिनो भवन्ति । 'णपुंसगवेया' नपुंसकवेदा इमे भवन्ति, न तु स्त्रीपुरुषवेदा इति ॥ 'पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ य पंच' एतेषां पर्याप्तयोऽपर्याप्तयश्च पञ्च, पञ्च भवन्ति मनःपर्याप्तेरभावात् । 'दो दिद्वीओ' द्वे दृष्टी, सम्यग्दृष्टयोऽपि भवन्ति मिथ्यादृष्टयोऽपि भवन्तीति भावः । 'दो दसणा' द्वे दर्शने एते चक्षुर्दर्शनिनोऽचक्षुदर्शनिनश्च भवन्तीति भावः । 'दो नाणा' द्वे ज्ञाने भवतः मतिज्ञानिनः श्रुतज्ञानिनश्चैते भवन्तीति भावः 'दो अन्नाणा' द्वे अज्ञाने, ते मत्यज्ञानिनः श्रुताज्ञानिनश्च भवन्तीति भावः । 'दुविहे जोगे' द्विविधो योगः वाग्योगः काययोगश्चैतेषां भवन्तीति भावः । 'दुविहे उवओगे' द्विविध उपयोगः, साकारोपयोगानाकारोपयोगद्वयवन्त ऐते भवन्तीति भावः 'आहारो छद्दिसिं' आहारः षड् दिशि असन्नी' ये संज्ञी नहीं होते असंज्ञी होते हैं असंज्ञी होने के कारण इनका संमूच्छिम होना है। क्योकि संमूर्छिम जीवों के मन नहीं होता है । ‘णपुंसगवेया' ये सब नपुंसक वेद वाले ही होते हैं । स्त्री वेद वाले और पुरुष वेद वाले ये नहीं होते हैं। 'पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ पंच' इन जलचर संमूछिम जीवों के पाँच पर्याप्तियाँ और पांच अपर्याप्तियां होती हैं । उनके मनःपर्याप्तिका अभाव रहता है "दो दिट्ठीओ' ये जलचर संमूच्छिम जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं और मिथ्यादृष्टि भी होते हैं । "दो दसणा' इनके चक्षुर्दर्शन और अचक्षुर्दर्शन ये दो दर्शन होते हैं। "दो नाणा' मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ऐसे दो ज्ञान इनके होते हैं । "दो अन्नाणा' दो अज्ञान - मत्यज्ञान और श्रुताज्ञान-ऐसे दो अज्ञान इनके होते हैं-"दुविहे जोगे' काय योग और वचन योग ऐसे दो योग इनके होते हैं । “दुविहे उवजोगे' ये साकार उपयोग और अनाकार उपयोग इन दो उपयोगों वाले होते हैं । “आहारो छद्दिर्सि" इनका आहार छह दिशाओं छ. 'नो सन्नी असन्नी" तय। सभी हात नयी ५६५ ससशी डाय छे. असशी डापाના કારણે તેઓનું સંમૂરિછમ પાડ્યું છે. કેમકે સંમૂરિછમ જીને મન હોતું નથી. જ पुंसगवेया' तसा मानस पाय छे. त्या स्त्रीवा। सने ५३५ हवाहात नथी. 'पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ पंच' मा सय२ स भूमि वान પાંચ પર્યાઢિયો અને પાંચ અપર્યાતિ હોય છે. તેઓને મન:પર્યાતિને અભાવ હોય है. दो दिदीओ' य२ स भूरिभ १ सभ्यष्टि पाए हाय छे. मने भिथ्यादृष्टिवाणा पण डाय छे 'दो दंसणा' तमाने यक्षुहशन अने भयक्षुशन ये प्रमाणे नाये शनी डाय छे. "दो णाणा" भतिज्ञान, मने श्रुतज्ञान के प्रमाणेना में ज्ञान भने होय छे. दो अन्नाणा' भने भति सज्ञान भने श्रुताशान मे शते में अज्ञान डाय छे. 'दुविहे जोगे' तमने आया। सने क्यनयोग प्रमाणेना में योगी डाय छे. 'दुविहे उवजोगे' तो सा२ उपयोग भने अना२ ५।। ये प्रमाणे ना में 64. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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