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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति०१ त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियजीवनिरूपणम् १९९ तयः । इन्द्रियाणि चत्वारि । चक्षुर्दनिनोऽचक्षुर्दनिनः । स्थितिरुत्कर्षेण षण्मासान् । शेषं यथा त्रीन्द्रियाणां यावदसंख्ययेया प्रज्ञप्ताः । ते एते चतुरिन्द्रियाः ॥सू० १९॥ टीका- 'से किं तं तेइंदिया' अथ के ते त्रीन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाणां किं लक्षणं कियन्तश्च भेदा इति प्रश्नः, उत्तरमाह-'तेइंदिया अणेगबिहा पन्नत्ता' त्रीन्द्रियाः अनेकविधा.-अनेक प्रकाराः प्रज्ञप्ताः-कथिताः। अनेकविधत्वमेव दर्शयति-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा 'ओवइया रोहिणिया जाव हथिसोडा' यावत्पदेन त्रीन्द्रियाणां प्रकारस्तु प्रज्ञापनायां द्रष्टव्यः तथाहि-'कुंथूपिवीलिया उदंसगा उद्देहिया उक्कलिया उप्पाया उप्पाडा-तणाहारा कट्टाहारा पत्ताहारा भालुया तणवेंटया पुप्फवेंटया फलवेटया बीयवेंटया तेंबुरणमिजिया तउसीमि जिया कप्पासटिमिजिया हिल्लिया झिल्लिया झिगिरा किंगिरिया बाहुया लहुया सुभगा सोवत्थिया, सुयवेटा इंदकाइया इंदगोवया तुरुतुंबगा कोत्थलवाहगा जया हालाहला पिसुया सयवाइया गम्ही हस्थिसोंडा । इति । एते च त्रीन्द्रियाः केचिद अति प्रसिद्धाः केचिद्देशविशेषतो ज्ञातव्याः 'जे यावन्ने तहप्पगा।' ये चान्ये तथाप्रकाराः अब सूत्रकार तेइन्द्रिय और चौइन्द्रियजीवों का निरूपण करते हैं- इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-"से कि तं तेइंदिया--इत्यादि । सूत्र ॥१८॥ टीकार्थ- “से किं तं ते इंदिया" हे भदन्त ! तेइन्द्रिय जीवों का क्या लक्षण है ! और इनके कितने भेद हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"तेइंदिया अणेगविहा पण्णत्ता" हे गौतम ! तेइन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, "तं जहा" जैसे-'ओवइया, रोहिणिया, जाव हथिसोंडा" यहां यावत्पद से प्रज्ञापना सूत्र का पाठ इनके विषय में जान लेना चाहिये जो टीका में दिया गया है । "ओवइया, रोहिणिका" से लेकर हस्तिशुण्ड तक के जीव तेइन्द्रिय जीव हैं। इनमें कितनेक प्रसिद्ध हैं और कितनेक देशविशेष से जान लेने के है। "जे यावन्ने तहप्पगारा ते समास ओ दुविहा पन्नता' तथा इनके ही जैसे और भी હવેસૂત્રકાર તે ઈદ્રિય અને ચૌઈ દ્રિય જી નું નિરૂપણ કરે છે. આમાં ગૌતમસ્વામી प्रभु ने मे पूछ छ है-"से किं तं ते इंदिया" त्यादि साथ-"से किं तं तेइंदिया" भगवान तान्द्रय वानु शुक्ष छ ? भने તેના કેટલા ભેદો કહ્યા છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામી ને કહે છે કે"तेइंदिया अणेगविहा पण्ण ता" गौतम तद्रिय व भने १२ ना सा छ, "तंजहा" ते साप्रमाणे छ, “ओवइया, रोहिणिया, जाव हत्थिसोंडा" मड़ियां यावर५. દથી આ વિષયને પ્રજ્ઞાપના સૂત્રને પાઠ સમજીલે. કે જે પાઠ આસૂત્રની ટીકામાં આપपामा माव्यो छे. ते 48 "ओवइया, रोहिणिका" थी सन स्तिशुएना ४थन सुधान! જીવ તેઈદ્રિય જીવ છે. અને તેમાં કેટલાક પ્રસિદ્ધ છે. અને કેટલાક દેશવિશેષ થી સમજી सेवा. "जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णता' तथा माना हैमी જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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