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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति०१ त्रसकायिकजीवानां शरीरादिद्वारनिरूपणम् १७३ इत्युक्तम् अत्र तिर्यग्गतावेव सूक्ष्मतेजस्कायिकाः समुत्पद्यन्ते न तु मनुष्येषु समुत्पद्यन्ते, ते जीवातेभ्यो निःसृताना मनुष्यगतौ उत्पादनिषेधात् । तदुक्तम् – “सत्तमिमहिनेरइया तेऊ वाऊ अणंतरुव्वट्टा । नवि पावे माणुस्सं तहेव असंखाउया सव्वे" ॥१॥ छाया-सप्तमीमहीनैरयिकास्तेजो वायुरनन्तरोवृत्ताः । नैव प्राप्नुवन्ति मानुष्यं तथैवासंख्यायुष्काः सर्वे ।।इति च्छाया, गत्यागतिद्वारं स्वयमेव दर्शयति-'एगगइया दुआगइया परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता' एकगतिकाः द्वयागतिकाः प्रत्येकशरीरिणोऽसंख्याताः प्रज्ञप्ताः । सूक्ष्मतेजस्कायिकाः मृत्वा तिर्यग्गतावेव उत्पद्यन्ते अतः सूक्ष्मतेजस्कायिका एकगतिकाः कथ्यन्ते, एकैव तिर्यगरूपैव गतिर्येषां ते एकगतिकाः, द्वयागतिकाः तिर्यङ्मनुष्येभ्य आगत्य सूक्ष्मतेजस्कायिकेषुत्पादात् 'सेसं तं शेषम् चेव' संस्थानच्यवनातिरिक्त सर्वं तदेव- सूक्ष्मपृथिवीकायिकप्रकरणवदेव ज्ञातव्यमिति । में सूक्ष्मतेजस्कायिक केवल तिर्यग्गति में ही उत्पन्न होते हैं क्योंकि तेज और वायु से निकले हुए जीवों का मनुष्य गति में जाने का निषेध है-कहा भी है-"सत्तमि महि नेरइया" इत्यादि अर्थात् सातवीं नरकभूमि से उद्धृत हुए नैरयिक तथा तैजस्कायिक और वायुकायिक तथा असंख्यात वर्ष की आयुवाले मनुष्य ये सब मरकर मनुष्य पर्याय को प्राप्त नहीं करते हैं 'एगगइया, दुआगइया परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता" ये सूक्ष्म तैजस्कायिक जीव एक गतिवाले ही होते है अर्थात् सूक्ष्मतेजस्कायिक से मरा हुआ जीव केवल एक तिर्यञ्च गति में ही उत्पन्न होते हैं इसलिए ये एक गतिक-एक ही गति में जाने वाले कहे गये हैं । तिर्यञ्च और मनुष्य इन दो गतियों में से आकर के जीव इन सूक्ष्मतेजस्कायिक रूप से उत्पन्न होते हैं। इसलिये इन्हें हृयागतिक-दो गतियों से आने वाला कहा गया है । "सेसं तं चेव" संस्थानच्यवन इन से व्यतिरिक्त और सब कथन सूक्ष्मपृथिवीकायिक के प्रकरण के जैसा ही है "से तं सुहुमतेउक्काइया" यह सब कथन सूक्ष्मतेजस्कायिको के सम्बन्ध में कहा है। નીકળેલા જ મનુષ્ય ગતિમાં જતા નથી. તેમ નિષેધ કરે છે. કહ્યું પણ છે કે'सत्तमि महि नेरइया त्या अर्थात् सातभी न२४ भूभी थी नीसा नैयि। तथा તેજસકાયિક અને વાયુકાયિકે તથા અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્ય વાળા મનુષ્ય આ मा भरीने मनुष्य पर्याय प्रात ४२ता नथी. 'एगगइया, दु आगइया परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता ! सूक्ष्म ते४२४.यि ७१ मे गतिवाणा हाय छे. अर्थात सूक्ष्म તેજસ્કાયિકમાંથી જીવ કેવળ એક તિય ગતિમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી તેઓ એકગતિક એકજ ગતિમાં જવાવાળા એ પ્રમાણે કહેલ છે. તિર્યંચ અને મનુષ્ય એ બે ગતિ યમાંથી આવીને જીવ આ સૂક્ષ્મ તેજસ્કાયિક પણુથી ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી તેઓને દ્વયા गति मे गतियोमाथी मावावा मे प्रमाणे डस छ. “सेर्स तं चेव” सस्थानद्वार અને યવન દ્વાર, ના કથન સિવાયનું બીજું બધું જ કથન સૂક્ષ્મ પૃથવીકાયના પ્રકરણમાં જે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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