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________________ जीवाभिगमसूत्रे निम्बाम्रजम्बु यावत् पुन्नागवृक्षाः, श्रीपर्णी तथा अशोकश्च ॥१॥ तत्र निम्बवृक्षः प्रसिद्धः, आम्रवृक्षोऽपि प्रसिद्ध एव, जम्बुवृक्षः प्रसिद्धः, यावत्पदेन कोशाम्रादायः प्रज्ञापनोक्ता ग्राह्याः, पुन्नाग:-पुष्पवृक्षविशेषः, नागवृक्षोऽपि पुष्पवृक्षविशेष एव, 'सीवण्णी' श्रीपर्णी अयं वृक्षः 'तहा' तथा असोगे य' अशोकश्च वृक्षविशेषः प्रसिद्ध एव, तदुक्तं गाथात्रयं प्रज्ञापनोक्तम् "निबंब-जंबु-कोसंब-साल-अंकुल्ल-पोलू -सेलू य । सल्लइ-मोयइ-मालुय-बउल-पलासे-करजे य ॥१॥ पुत्तजीवयऽरिहे, विहेलए हरिउए य भिल्लाए । उंबे-नरिया-खीरिणि-बोधव्वे भायइ-पियाले ॥२॥ पूइयनिंबकरंजे सुण्हा तह सीसवा य असणे य ।। पुन्नाग-नागक्रुखा सीवण्णी तहा असोगे य" ॥३॥ इति आसामर्थः प्रज्ञापनायामेव द्रष्टव्यः । 'जे यावन्ने तहप्पगारा' ये चान्ये तथाप्रकाराः निम्बादिवृक्षसदृशा स्तेऽपि एकास्थिकवृक्षरूपतया प्रत्येतव्याः । 'एएसिणं मूला वि असंखेज्ज जीवया' एतेषां निम्बादिवृक्षाणां मूलान्यपि असंख्येयजीवकानि संख्येयजीवविशिष्टानि भवन्तीति । ‘एवं कंदा खंधा तया साखा पवाला' एवं निम्बादिवृक्षाणां कन्दानि स्कन्धाः त्वक्-शाखाः वृक्ष जामुनका वृक्ष, यावत् पुन्नाग का वृक्ष, नागवृक्ष और अशोक वृक्ष ये सब वृक्ष पुष्प वृक्ष विशेष है । यहां यावत्पदसे-कोशाम्र से लेकर अशोक वृक्ष तक जो टीका में तीन गाथाओं में कहे गये हैं वे यहां गृहीत हुए हैं जो प्रज्ञापना सूत्र में कहे गये हैं तथा इसी प्रकार से “जे यावन्ने तहप्पगारा" और भी इसी प्रकार के कि जिन वृक्षों के फलों में एक ही गुठली निकलती है ऐसे फल वाले वृक्ष भी एकास्थिक पद से गृहीत हो जाते हैं। 'एएसिणं मूला वि असंखेज्जजीवया” इन नीम आदि वृक्षों के मूल-जडे-असंख्याते जीवों से विशिष्ट होते हैं । तथा “एवं कंदा, खंधा, तथा साला, पबाला" इन वृक्षों के कन्द स्कन्ध तहा असोगे य" सी भानु आ3, मांगानु आ3, on मुना आ3 यावत् पुन्नागना आहे, નાગવૃક્ષ, અને અશોક વૃક્ષ આ બધા પુષ્પ વૃક્ષ વિશેષ છે. અહિયાં યાવત્ પદથી કેશામ્ર થી લઈને અશોક વૃક્ષ સુધીના ટીકામાં ત્રણ ગાથાઓથી કહ્યા છે, તે બધા વૃક્ષો અહિયાં अड ४२२या छे तथा प्रज्ञा ५ना सूत्रमा २ सा छेते तथा 'जे यावन्ने तहप्पगारा" બીજા પણ જે એવા પ્રકારના કે જે વૃક્ષોના ફળોમાં એક જ ગોઠલી નીકળે એવા ફળવાળા વૃક્ષો પણ એકસ્થિક પદથી ગ્રહણ કરાયા છે “एएसि णं मूला वि असंखेज्जजीवया" २मा सीमा विगेरे आडना भूण ५४ सस'भ्यात होय छे. तथा “एवं कंदा, खंधा, साला पवाला," से प्रमाणे । જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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