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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ वनस्पतिकायिकानां शरीरादिद्वारनिरूपणम् १५५ आयकायप्रभृतयः, न तु भूमिस्फोटशब्देन छत्राकम् (साँप का छत्र) गृह्यते तस्य साधारणशरीरवत्त्वात् । 'से किं तं रुक्खा' अथ के ते वृक्षाः केषामभिधानं वृक्ष इति कियझेदाश्च वृक्षा भवन्तीति प्रश्नः, उत्तरयति-रुक्खा दुविहा पन्नत्ता' वृक्षा द्विविधाः-द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ताःकथिताः । भेदद्वयमेव दर्शयति-तं जहा' इत्यादि 'तं जहा' तद्यथा-'एगढिया य बहुबीया य' एकास्थिकाश्च बहुबीजाश्च, तत्र यस्य फलस्याभ्यन्तरे एकमेव बीजं भवेत् तस्यैकास्थिक इति नाम भवति यथा निम्बादिः, यस्य च फलस्याभ्यन्तरे अनेकानि बीजानि भवन्ति तस्य बहुबीजक इति नाम भवति यथा-अस्थिकतिन्दुकप्रभृतयः-'से किं तं एगट्टिया' अथ के ते एकास्थिकाः, उत्तरयति-'एगट्ठिया अणेगविहा पन्नत्ता' एकास्थिका वृक्षाः अनेकविधाःअनेकप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः-कथिताः अनेकविधभेदानेव दर्शयति-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-नि बंबजंबु जाव पुण्णागरुक्खा, सीवण्णी तहा असोगे य ॥१॥ स्फोट किया है अर्थात् भूमि को फोड़कर निकलनेवाला जो साप का छत्र कहलाता है वह अर्थ यहां नहीं लिया जायगा क्योंकि वह भी साधारण शरीर वनस्पति है। यह तो प्रत्येक शरीर वनस्पतिकाय है जो आयकाय आदि नाम से कहलाता है । "रुक्खा "दुविहा पन्नत्ता" वृक्ष दो प्रकार के कहे गये हैं-"तं जहा" जैसे-“एगद्विया य बहुबी. या य" जिनके फल के भीतर केवल एक बीज होता है ऐसे फलवाले वृक्ष एकास्थिक है-जैसे-नीमका वृक्ष आदि तथा जिनके फलों के भीतर अनेक बीज होते हैं ऐसे फल वाले वृक्ष बहुबीज है-जैसे-अस्थिक तिन्दुक आदिके वृक्ष"से किं तं एगट्टिया" हे भदन्त ! एकास्थिक वृक्ष कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते है - "एग ट्ठिया अणेगविहा पण्णत्ता" हे गौतम ! एकास्थिक वृक्ष अनेक प्रकार के होते हैं "तं जहा,, जैसे 'निबंव जंबु जाव पुण्णागनागरुक्खा सीवण्णी तहा असोगे य" नीमका वृक्ष, आमका હણ ને અર્થ ભૂમિફેટન એ પ્રમાણે કર્યો છે. અર્થાત જમીનને ફેડીનેનીકળવા વાળી વનસ્પતિ કે જે સાપનું છત્ર એ પ્રમાણે કહેવાય છે, તે અર્થ અહિયાં લેવામાં આવતું નથી. કેમકે તે પણ સાધારણ શરીર વનસ્પતિ છે. આ તે પ્રત્યેક શરીર વનસ્પતિકાયનું थन यासे छे. 'माया' नामथी वाय छे. "रुक्खा दुविहा पन्नत्ता" वृक्षा में प्रारना ४ा छ. "तं जहा" ते २१ प्रमाणे सभा"एगढिया य बहुबीया य" ना सनी २ १ मे भी डाय त વૃક્ષ એકાસ્થિક છે. જેમકે-લીમડાના વૃક્ષો વિગેરે. તથા જેના ફલેની અંદર અનેક બી હોય તેવા ફળવાળા વૃક્ષોને બહુ બીજક-બહુ બીવાળા કહે છે. જેવી રીતે અસ્થિક, તેંદુક વિગેરે વૃક્ષ વિશે. "से किं तं एगडिया" मान्यस्थि वृक्षो १२ना डोय छे ? 2 प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४३ छ -“एगट्ठिया अणेगविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! स्थिर वृक्षी भने प्रा२ना होय छे. "तं जहा'' भाडे--निबंबजंबू जाव पुण्णागनागरुक्खा सिवणि. જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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