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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. १ आहारद्वारनिरूपणम् ९७ प्रदेशावगाढानि द्रव्याणि आहरन्ति, 'कालओ अन्नयरसमयद्वितियाई' कालतः-कालापेक्षया अन्यतरसमयस्थितिकानि-जघन्यस्थितिकानि मध्यमस्थितिकानि उत्कृष्टस्थितिकानि द्रव्याणि आहरन्ति, स्थितिरिति आहारयोग्यस्कन्धपरिणामत्वेऽवस्थानं ज्ञातव्य मिति । 'भावओ वण्ण मंताई गंधमंताई रसमंताई फासमंताई भावतो वर्णवन्ति गन्धवन्ति रसवन्ति स्पर्शवन्ति द्रव्याणि आहरन्ति, प्रतिपरमाण्वकैकवर्णगन्धरसद्विस्पर्शसद्भावादिति । 'जाई भावओ वण्णमंताई आहारेति' यानि द्रव्याणि भावतो वर्णवन्ति आहरन्ति 'ताई कि एगवण्णाई आहारेति' तानि कि एक वर्णानि आहरन्ति, अथवा-'दुवण्णाई आहारेति' द्विवर्णानि-द्विवर्णवन्ति द्रव्याणि आहरन्ति, अथवा-'तिवण्णाई आहारेंति' त्रिवर्णानि-वर्णत्रयोपेतानि द्रव्याणि आहरन्ति, अथवा-'चउवbणाई आहारेंति' चतुर्वर्णानि-वर्णचतुष्कयुक्तानि द्रव्याणि आहरन्ति, किं वा 'पंचवण्णाई आहारेति' पञ्चवर्णानि-वर्णपञ्चकोपेतानि द्रव्याणि आहरन्ति सूक्ष्मपृथिवीवीकायिका इति प्रश्नः, भगक्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ हुए द्रव्यों का वे आहार करते हैं "कालओ अन्नयरसमयढिइयाई" काल की अपेक्षा किसी एक समय की स्थितिवाले, या जघन्यस्थितिवाले, या मध्यमस्थितिवाले या उत्कृष्टस्थितिवाले द्रव्यों का वे आहार करते हैं। आहार के योग्य स्कन्धरूप परिणाम में जो अवस्थान है वह स्थिति है । "भावओ वण्णमंताई, गंधमंताई रसमंताई फासमंताई" भाव की अपेक्षा वर्णवाले गन्धवाले, रसवाले और स्पर्शवाले द्रव्यों का वे आहार करते हैं क्योंकि हर एक परमाणु में एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्शी का सद्भाव रहा करता है "जाइं भावओ वण्णमंताई आहारेंति ताई कि एगवण्णाई आहारेंति" भावकी अपेक्षा जिन वर्णवाले द्रव्यों का वे आहार करते हैं वे क्या एक वर्णवाले होते हैं "दुवण्णाइं आहारेंति तिवण्णाई आहारेंति" या दो वर्णवाले होते हैं ? या तीन वर्णवाले होते हैं, या "चउवण्णाई" चार वर्णवाले हैं ? या "पंचवण्णाई" पांच वर्णवाले होते हैं । अर्थात् सूक्ष्मपृथिवीकायिक जीव भावकी माद (२डसा) येतद्रव्याना माहार रे छ. "कालओ अन्नयरसमयद्वितियाई" अनी અપેક્ષાએ તેઓ કઈ એક સમયની સ્થિતિવાળાં, અથવા જઘન્ય સ્થિતિવાળાં, અથવા મધ્યમ સ્થિતિવાળાં અથવા ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળાં દ્રવ્યને આહાર કરે છે. આહારને ગ્ય સ્કન્ધ રૂપ परिणाममा २ मवस्थान छ, तेनु नाम स्थिति छे. 'भावओ वण्णमंताई गंधमंताई रसमंताई फासमंताई' भावनी अपेक्षा तसा वाणां, वाणां, २सवाणां मने २५ mi દ્રવ્યોને અહિાર કરે છે, કારણ કે પ્રત્યેક પરમાણુમાં એક વર્ણ, એક ગંધ, એક રસ અને બે સ્પશેને સદ્ભાવ રહે છે. प्रश्न-"जाई भावओ वण्णमंताई आहारेति ताइं किं एगवण्णाई आहारेति" ભાવની અપેક્ષાએ જે વર્ણવાળાં દ્રવ્યને તેઓ આહાર કરે છે, તે શું એક વર્ણવાળાં હોય छ, “दुवण्णाई आहारेति, तिवण्णाई आहारेंति, चउवण्णाइं आहारैति, पंचवण्णाई आहारेति ? ३ मे पवाज डाय छ ? वाणा डाय छ ? यार Kyatmi જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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