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राजप्रश्नीयसूत्रे परिग्गहे पच्चक्खाए तं इयाणि पिणं तस्सेव भगवओ अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि सव्वं कोहं जाव मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खामि अकरणिज्जं जोगं पच्चक्खामि, सव्व असणं० चउब्विह पि आहार जावजीवाए पच्चक्खामि, जंपि य मे सरीर इद जाव फुसंतुत्ति एवंपि य णं चरिमेहिं ऊसासनीसासेहिं वोसिरामि-त्ति कटू आलोइयपडिकते सभाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सेहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाणे उववायसभाए देवत्ताए उववन्ने । ॥सू० १६४॥
इति पएसिरायरस वष्णणं समत्तं ।
छाया-ततः खलु प्रदेशी राजा सूर्यकान्ताया देव्या आत्मानं संप्रलब्धं ज्ञात्वा सूर्यकान्ताया देव्या मनसाऽपि अप्रद्विषन् यत्रैव पोषधशाला तत्रैव उपागच्छति पोषधशाला प्रमार्जयति, उच्चारप्रस्रवणभूमि प्रतिलेखयति, दर्भसरतारकं सरतण ति, दर्भस तारकम् दृरोहति पौररत्याभिमुखः संपल्यंङ्कनिषण्णः करत्लपरिगृहीतं
"तए णं से पएसी राया' इत्यादि ।
मूलार्थ-"तए णं-' इसके बाद “से पएसी राया-" वह प्रदेशी राजा "मूरियकंताए-देवीए अत्ताणं संपलद्धं, जाणित्ता-” सूर्यकान्ता देवी की यह उत्पात (करामत) है इस प्रकार जान कर भी-"मूरियकंताए देवीए मणसा वि अप्पदुस्समाणे जेणेव पोसहसाला तेण व उवागच्छर-" उस सूर्यकान्ता देवी के प्रति मनसे भी द्वेषभाव नहीं करता हुवा जहां पौषधशाला थी वहां पर गया-"पोसहसाल' पमज्जेइ-" वहां जा करके उसने पोषधशाला की प्रमार्ज की "उच्चारषासवणभूमि पडिलेहेइ-" उच्चार प्रस्रवण भूमि की प्रतिलेखना
"तए णं से पएसी राया' इत्यादि
भूदार्थ 'तएणं' त्या२ पछी से पएसी राण' ते अशी २०n 'सूरियकं ए देवीए अत्ताण सपलद्धं जाणित्ता" सूर्यान्ता हेवी 240 ५५ यु छ माम oneyan छतां "सरियक'ताए देवीए मणसा वि अप्यदुम्समाणे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ" ते सूर्य Bidu वी प्रत्ये भनथी ५५ पलाव न ४२तi ज्यां पोष५॥ हती त्यां गया. (पोसहसालं पमज्जेइ) त्यां न तेणे पोषयशाजानी प्रभा ना ४३. "उच्चारपास व ण भूमि पडिलेहेइ "प्यार-प्रस१५ सूभिनी
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨