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________________ सुबोधिनी टीका सु. १६४ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् ३७७ शिर आवर्त मस्तके अञ्जलिं कृत्वा एवमवादीत्-नमोऽस्तु खलु अहंद्भयः यावत् संप्राप्तेभ्यः नमोऽस्तु खलु केशिने कुमारश्रमणाय मम धर्माऽऽचार्याय धर्मोपदेशकाय, वन्दे खलु भगवन्तं तत्रगतम् इहगतः, पश्यतु मां भगवान् तत्रगतः इह गतम्' इति कृत्वा वन्दते नमस्यति, पूर्वमपि खलु मया केशिन: कुमारश्रमणग्यानिके स्थूलप्राणातिपातः प्रत्याख्यातः यावत् स्थूलपरिग्रहः प्रत्याख्यातः, की-"दब्भसंथारगं संथरेइ-" और फिर दर्भ का संथारा बिछाया "दब्भसंथारगं दुरूहइ-” उसे बिछा कर वह उस पर बेठ गया. "पुरस्थाभिमुहे संपलियंकनिसन्ने-" वहां आरूढ होकर वह पूर्व दिशा की ओर मुह करके पर्यङ्कासन से बैठ गया. "करयलपरिग्गहिय सिरसावत्तं मत्थए अजलिं कट्ट एवं वयासी-" और दोनों हाथों की अंजली बनाकर एवं-उसे मस्तक पर घुमाकर इस प्रकार से कहने लगा. “नमो थुणं अरहताणं जाव संपत्ताणं, नमो थुणं केसिस्स कुमारसमणरस मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स-" अर्हन्त भगवन्तों के लिये नमस्कार हो, मेरे धर्मोपदेशक धर्माचार्य केशीकुमार श्रमण के लिये नमस्कार हो, “वंदामि णं भगवंतं त थ य इहगए-" यहां रहा हवा मैं वहां पर रहे हुवे भगवान् को वन्दना करता हूं, "-पासउ मे भगवं तत्थगए इहगय त्ति कटु वंदइ. नमसइ-" वहां पर रहे हुवे वे भगवान् यहां रहे हुवे मुझे देखें-इस प्रकार कह कर उस प्रदेशी राजाने उनकी वन्दना की नमस्कार किया. 'पुचि पि णं मए केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए थूलपाणाइवाए पच्चवखाए, जाव थूलपरिरगहे पच्चक्रवाए " पहलेभी मैंने केशी प्रतिसेमना ४२. "दब्भसंथारगं संथरेई" भने पछी मनु मासन त्या पाययुः "दब्भसंथारग दरूहह" तेने पाथरीने ते तेना ५२ Sो गयी. "परस्थाभिमुहे संपलिथंकनिस ने" त्या मा३८ थने ते पूर्व दिशा त२५ भुम ४शने ५ सनथी सी गयी. 'करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं म थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी" मने मन्ने हायानी संलि मनावीने अने तेने भरत४ ५२ ३२वी ते मा प्रमाणे ४३१॥ साय. "नमोत्थुणं अरहंता ण जाव संपत्ताण नमोत्थुण केसिप स कुमारसमणस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगरस" म त Mn. વંતને મારા નમસ્કાર છે, મારા ધર્મોપદેશક ધર્માચાર્ય કેશીકુમાર શ્રમણને મારા नम२४॥२ छ. "वंदामि गं भगवतं तत्थगय इहगए" 2487 २डीने त्यां वर्तमान सापानने बहन ४३ छ. "पासउ मे भगवं तत्थगए इहगय त्ति कटु वंदइ, नमसई" त्या २हतi सपान भने महानु. 40 प्रमाणे डीने ते प्रदेशी तथे तभने बहन ४ो, नभ४।२ ४ा. "पुद्वि पि ण मए केसिस्सकुमारसमणस्स अंतिए थूलपाणाइवाए पञ्चक्खाए, जाव थूल परिग्गहे पञ्चक्खाए" શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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