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सुबोधिनी रोका. सू. १४५ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् २६७ अहमन्यदा यावत् चोरमुपनयन्ति, ततः खलु अहं त पुरुषं सवेतः समन्तात समभिलोके नैव खलु तत्र जीवं पश्यामि, ततः खलु अहं तं पुरुषं द्विधा स्फा. टितं करोमि, कन्वा सर्वतः समन्तात् समभिलोके. न चैव खल तत्र जीव पश्यामि, एवं त्रिधा चतुर्धा संख्येयधा स्फाटितं करोमि न चैव तत्र जीवं पश्यामि, यदि खलु भदन्त ! अहं तस्मिन् पुरुषे द्विधा वा त्रिधा वा चतुर्धा वा अहं अन्नया जाव चोर उवणे ति) मैं एक दिन १३५वें सूत्र में कथित अनेक गणनायक आदिकों के साथ उपस्थानशाला में बैठा हुआ था वहां पर मेरे नगर रक्षक मुसकिया बन्धन से बांधकर एक चोर को लाया (तए णं अहं तं पुरिसं सव्वओ समंता समभिलोएमि) मैंने उस पुरुष को मस्तक से लेकर चरणपर्यन्त अच्छी तरह से देखा (नो चेव णं तत्थ जीव पासामि) परन्तु मुझे वहां पर जीव देखने में नहीं आया (तए णं अहं तं पुरिसं दहा फालियं करेमि) इसके बाद मैंने उस चोर के दो टुकडे कर दिये. (करित्ता सव्वओ समंता सम भिलोएमि) दो टुकडे करने के बाद फिर मैंने उसका अच्छी तरह से सब ओर से निरीक्षण किया (नो चेव णं तस्थ जीवं पासामि) परन्तु फिर भी वहां पर मुझे जीव देखने में नहीं आया (एवं तिहा, चउहा, संखेजहा फालिय'करेमि-नो चेवणं तत्थ जीव पासामि) तदनन्तर मैंने उसके तीन टुकड़े किये, चार टुकडे किये, यावत संख्यात (सैंकडे) टुकड़े किये परन्तु फिरभी वहां मुझे जीव नहीं दिखा (जइणं भंते ! अहं तसि पुरिसंसि दुहा वा तिहा वा चउहा
चोरं उबणेति) मे से १३५ मा सूत्रमा यित धा । नायवगेरे. ની સાથે બાહ્ય ઉપસ્થાન શાળામાં બેઠા હતા. ત્યાં મારા નગરરક્ષકે એક ચેરને भुटाट मधीन भारी साम दाव्या. (त एणं अह त परिसं सचओ समंता सभिलोएमि) में ते ५३पने भस्तथी भांजन ५५ सुधी सारी शत भयो. (नो चेव णं तत्थ जीव पासामि) पर भने तेमा ७१ हेमायो न. (तएणं अहं तं पुरिसं दुहा फालियं करेमि) त्या२ ५७ मे ते यार ५३पना २१ ४२० नाघ्या. (करिता सन्चओ समता समभिलोएमि) मे ४४मा श२ पछी में तेनु सारी शत निरीक्षण यु. (नो चेव तत्थ जीवं पासामि) ५। भने त्यां पायो नही. (एवं तिहा. चउहा. संखेज्जहा फालियं करेमि-नो चेवणं तत्थ जीव पासामि) त्यारे पछी मैं तेन १५ ४४७१ या, या२ 1331 यो યાવત્ સંખ્યાત (સેંકડો) કકડા કર્યા પણ છતાં એ ત્યાં મને જવા દેખાય નહીં.
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨