________________
१६८
राजप्रश्नीयसूत्रे
पएसी ! मम पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था - जडा खलु भो ! जड जुपवासति जाव पवियरित्तए से पूर्ण पएसी ! अट्टे समत्थे ? हंता ! अस्थि ॥सू० १२८॥
छाया - ततः खलु स प्रदेशी राजा चित्रेण सारथिना सार्धं यत्रैव केश कुमारश्रमणः तत्रैव उपागच्छति केशिनः कुमारश्रप्रणस्य दूरसामन्ते स्थित्वा एवमवादीत् - यूयं खलु भदन्त ! अधोऽवधिकाः अन्नजीविता: ? । ततः खलु केशीकुमारश्रमणः प्रदेशिनं राजानमेवमवादीत- प्रदे शिन् ! तद्यथा नाम - अङ्कवणिज इति वा शङ्खवणिज इति वा दन्तवणिज -
'तए णं से पएसी गया चितेण सारहिणा सद्धि इत्यादि ।
सूत्रार्थ - (तए णं) इसके बाद ( से पएसी राया वित्तेण सारहिणा सर्द्धि) वह प्रदेशी राजा चित्र सारथि के साथ (जेणेव के सिकुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ) जहां केशिकुमारश्रमण थे वहां पर गया (केसिस्स कुमा. रसमणस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं क्यासी) वहां जाकर वह केशिकुमार श्रमण से एसे स्थान पर खडा रह गया कि जो स्थान न उनसे अधिक दूर था और न अधिक पास था। वहीं से खडेर इसने उनसे ऐसा कहा(तुभे णं भंते ! आहोहिया अण्णजीविया) हे भदन्त ! आपका ज्ञान - अवविज्ञान परमावधि से किंचित् न्यून है, और आप प्रासुक एषणीय ही आहार करते हैं ? (तए णं के साकुमारसमणे पएस राय एवं वपासी) तब केशी कुमार श्रमणने प्रदेशी राजा से ऐसा कहा - पएसी ! से तहा णामए अंकवाणियाइ वा दंतवाणियाइ वा सुक भंसिउकामा णो सम्म
'तए णं' से पएसी राया चित्तेण सारहिणा सद्धिं' इत्यादि । सूत्रार्थ -- (तए ण) त्याच्छी ( से पएसी राया चित्तेण सारहिणा सद्धि) ते प्रदेशी रान्न चित्र सारथीनी साथै ( जेणेव केसि कुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ) न्यां वैशिठुभार श्रभाणु हुता त्यां गया. ( के सिस्स कुमारसमणस्स अदूरसाम ते ठिच्चा एवं वयासी) त्यां कहने ते शिकुमार श्रमाथी सेवा स्थाने उला रह्या કે જે સ્થાન તેમનાથી વધારે દૂર પણ નહિં હતું અને વધારે નજીક પણ નહિ હતુ त्यां तुला ७ला ४ तेो तेभने या प्रमाणे धु (तुब्भे णं भते ! आहोहिया अण्णाजीविया) हे महंत ! यातु ज्ञान- परभावधि उरतां थोडु' उभ छे ? भने आप आसुः शेषणीय आहार ४ था । हो ? (तएण केसीकुमारसमणे परसि राय एवं वयासी) त्यारे शीकुमार श्रम प्रदेशी शब्लने या प्रमाणे धु
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૨