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________________ सुबोधिनी टीका सू. १२४ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् १४५ खलु भदन्त ! यूय प्रदेशिने राज्ञे धर्ममाख्यात, छन्देन भदन्त ! यूय प्रदेशिने राज्ञे धर्ममारूयात । ततः खलु स के शीकुमारश्रमणः चित्रं सारथिमेवमवादीत्-अपि च चित्र ! ज्ञास्यामः । ततः खलुस चित्रः सारथिः केशिन कुमारश्रमण वन्दते नमस्यति, यत्रैव चातुर्घण्ट: अश्वरथः तत्रैवो लाऊंगा (तमा ण देवाणुप्पिया! तुम्भे पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खमाणा गिलाएजाह) तो आप हे देवानुप्रिय ! प्रदेशी राजा को जिनोक्त धर्म का उपदेश करते समय ग्लानि मत करना (अगिलाए ण भते! तुब्भे पए. सिस्म धम्ममाइक्खे जाह) प्रत्युत अग्लानिभाव से ही हे भदन्त ! आप प्रदेशी राजा को धर्म का उपदेश करना (छंदेण भते! तुब्भे पएसिस्स रण्णो धम्ममाइकखेजाह) तथा आप अपनी इच्छा के अनुसार ही हे भदन्त ! प्रदेशो राजा को धर्म का उपदेश देना. उसकी इच्छा के अनुसार नहीं (तए ण से केसीकुमारसमणे चित्तंसारहि एवं वयासी) तब उन केशी. कुमारश्रमणने चित्र सारथि से ऐसा कहा-(अवियाइ चिता जाणिस्सामो) हे चित्र ! अघसर आने पर देखा जावेगा. आप के कथनानुसार उसे धर्मोपदेश देने का मेरा भाव तो है। (तए ण से चित्ते सारही केसिं कु. मारसमण बंदइ, नमसइ, जेणेव चाउम्पटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ) इसके अनन्तर चित्र सारथिने केशीकुमारश्रमण को बन्दना की, नमस्कार किया, और फिर वह जहां चार घंटोंवाला अश्वरथ था वहां पर आया (न माण देवाणुपिया! तुम्भे पएसिस्स रन्नो धन्ममाइक्खमाणा गिलाए ज्जाह) ताइवानुप्रिय ! मा५श्री ते घशी ने मनात धमनी पहेश ४२ai aur. मनुमा नहि. (अगिलाए ण भते ! तुम्भे पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खेज्जाह) ५२ मत ! २५श्री ते प्रशी ने मसानिमाथी । धर्भपिश ४२।।. (छ देण भाते! तुन्भे पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्वखेज्जाह) તેમજ હે ભદંત ! આપશ્રી પિતાની ઈચ્છા મુજબ જ પ્રદેશ રાજાને ધર્મોપદેશ કરશે. तेनी छ। प्रभारी नहि. (तएण से कोसीकुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयासी) त्यारे ते उशीमा२ श्रमणे ते यत्रसाथिने -AL प्रमाणे ४ह्यु. (अवियाई चित्ता जाणिस्सामो) चित्र ! यित भवस२ मावशे त्यारे न शु तभी छ। ते भु भारी पशु तेभने उपदेश ४२वानी भावना छ . (त एण से चित्ते सारही केसि कुमारसमण वदइ, नमसइ, जेणेव चाउग्घटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ) त्या२ पछी चित्रसाथिये शिशुभारश्रमाने बहना ४३श नम२४.२ ४ा भने पछी ते यार बाथी युत २५१३२५ तो. त्या माव्या. (चाउग्घंटे શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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