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________________ १२६ राजप्रश्नीयसूत्रे अहंदयो यावत्-सम्प्राप्तेभ्यः, नमोऽस्तु खल केशिने कुमारश्रमणाय मम धर्माचार्याय धर्मोपदेशकाय, वन्दे खलु भगवन्त तत्रगतमिहगतः पश्यतु मे तत्रगत इहगतप. इति कृत्वा वन्दते नपश्यति, तान् उद्यानपालकान् विपु. लेन वस्त्रगन्धमाल्पालङ्कारेण सत्करोति संमानयति विपुल जोविताहे पोति. दान ददाति प्रति विसर्जयति । कौडुम्बिकपुरुषान् शब्दयति, एवमवादीतअंजलि बनाई और उसे मस्तक पर से तीन बार घुनाकर इस प्रकार पाठ पढने लगा-(नमोऽत्युण अरहताण जाव संपात्ताण', नमोत्थुण केसिस्स कुमारसमणस्म मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स, वदामि ण भगवंत तत्थगय इहगए) अर्हन्त भगवन्तों को नमस्कार हो यावत सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त हुए हैं. मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक केशीकुमारश्रमण को नमस्कार हो. यहां रहा हुआ मैं यहां पर मृगवनोद्यान में विराजमान आपको नमस्कार करता हूं। (पासउ में तत्थगए इहगयं त्तिक वंदइ नम. सइ) वहां रहे हुए वे भगवान् यहाँ रहे हुए मुझे देखे' इस प्रकार कहकर उसने वन्दना की, नमस्कार किया, (ने उजाणपालए विउलेणवत्थगधमलालंकारेण सक्कारेइ) इस तरह परोक्षविनग करके फिर उसने उन उद्यानपालकों का विपुल वस्त्र गध माला एवं अलकारों से सत्कार किया (मम्माणेइ) सन्मान किया (विउलं जीवियारिह पीइदाणदलयड) और अन्त में उनके लिये विपुल मात्रा में जीविकायोग्य प्रीतिदान दिया (पडिविसज्सेइ) फिर ત્યાં જઈને તેણે પિતાના બન્ને હાથની ખૂબ નમ્રપણે અંજલિ બનાવી અને તેને મસ્તક પર ત્રણ વખત ફેરવીને આ પ્રમાણે તે પાકનું ઉચ્ચારણ કરવા લાગે (नमोऽत्थुणं अरहंताणं जाव संपत्ताणं, नमोत्थुगं केसिस्स कुमारसमणरस मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगम्स वदामि णं भगवंत तत्थगय इहगए) અહંત ભગવંતને મારા નમસ્કાર છે કે જેઓશ્રીએ યાવત્ સિદ્ધિગતિ નામકસ્થાનને પ્રાપ્ત કર્યું છે. મારા ધર્માચાર્ય ધર્મોપદેશક કેશીકુમારશ્રમણને નમસ્કાર છે. અહીંથી ईयां भृगवनायधामा विमान आपश्रीन नम२७१२ ४३ छु. (पासउ में तत्थगए इहगय त्तिक वंदइ नमसइ) त्या विमान ते मापान सही विधमान भने कुओ मा प्रमाणे ४हीन तेथे पहना ४२॥ नमः४।२ ४ा. (ते उज्जाणपालए विउलेणं बत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ) मा प्रमाणे पक्ष विनय કરીને તેણે તે ઉદ્યાનપાલકને વિપુલ વસ્ત્ર, ગંધ, માળાઓ અને અલંકારે વડે समा२ यो. (सम्माणेइ) सन्मान यु. (किउल जीवियारिह पीईदाण दलयइ) भने छेटे तेभने विधुर मात्रामा वि योग्य प्रीतिहान मायु:(पडिविसज्जेइ) શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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