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________________ सुबोधिनी टीका. सू. १२१ सूर्याभदेवस्य पूर्वं भवजीवप्रदेशिराजवर्ण' नम् १२७ क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः ! चतुर्घष्टमश्वरथं युक्तमेव उपस्थापपन यावत् प्रत्यर्पयत । ततः खलु ते कौटुम्बिकपुरुषा यावत् क्षिममेत्र सच्छत्र सध्वज यावत् उपस्थापयित्वा तामाज्ञप्तिकां प्रत्यर्पयन्ति । ततः खलु स चित्रः सारथिः कौटुम्बिक पुरुषाणामन्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्ट याद हृदयः स्नातः कृत बलिकर्मा यावत्-शरोरः यत्रैव चातुर्घण्टो यावद् दूरुह्य सको · ० महता भटचटकर० तदेव यावत् पर्युपास्ते धर्मकथा || मु० १२१ ।। विसर्जित कर दिया (कोड बियपुरिसे सदावेइ ) तदनन्तर उसने अपने आज्ञ कारी सेवकों को बुलाया (सदावित्ता एवं वयासी) बुलाकर उनसे ऐसा कहा ( खियामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घट आमरह जुत्तामेत्र उट्ठवेह जाव पञ्च पिणेह ) हे देवानुप्रियो ! तुम लोग शीघ्र ही चार घंटों वाले अश्वरथ को घोडाओं से युक्त करके उपस्थित करो, यावत् फिर हमें इसकी खबर दो (एण ते कोडबियपुरिया जान खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव उत्रवित्ता तमाणत्तियं पञ्चपिगति) इसके बाद उन कौटुम्बिक पुरुषोंने यावत् बहुत ही शीघ्र छत्र एवं ध्वजा से युक्त करके उस चार घंटावाले अश्वरथ को घोडाओं से युक्त कर उपस्थित कर दिया और पीछे इस खब को उसके पास दिया. (नएण से वित्ते सारही कोडुबियपुरिसान अतिए एयमहं सोच्चा निसम्म हट्ठतु जाव हियए हाए कपबलिकम्मे जाव सरीरे चाटे आसरहे जाव दुरुहिता सकोरंट० मध्या भडवडगर ० तं चेत्र जाव पज्जुवासह धम्मका) तब उस चित्र सारथिने कौटुम्बिक त्यार पछी तेभने विसर्भित . ( कोड बियपुरिसे सदा बेइ) त्यार माह ते पोताना आज्ञाअरी सेवने मोसाव्या. (सद्दावित्ता एवं वयामी) खोसावीने तेमने या प्रमाणे उधुं. (खिप्पामेव भो देवाणुपिया ! चाउरघट आसरह जुत्तामेव उबवेह जाब पच्चपिणह) हे देवानुप्रियो ! तमे सोडी सत्वरे यार घटोवाजा અશ્ર્વરથને ઘેાડાએથી સજજ કરીને અહીં ઉપસ્થિત કરી, યાવતુ પછી અમને ખખર मा. (तए णं ते कोड बियपुरिसा जाव खिप्पामेव सच्छन्तं सज्झयं जाव उवहवित्ता तामाणत्तियं पच्चप्पियंति) त्यार पछी ते टुमि पुरषो यावत શીઘ્ર છત્ર અને ધ્વજાથી સુસજ્જિત કરીને તે ચાર ઘટાઓવાળા અશ્વરથને ઘેાડાઓથી યુકત કરીને ઉપસ્થિત કર્યાં. અને તેની ખખર પણ તેની પાસે પહાંચાડી દીધી. (त एणं से चिते सारही कोडबियपुरिसाण अतिए एयमहं सोचा निसम्म हट्ठतु जात्र हिजए हाए कयबलिकम्मे जाब सरीरे चाउ घटे आसरहे जाव दुरुहित्ता सकोरंट० महया भड चडगर • तं चेत्र जात्र पज्जुबासइ धम्मका) ते चित्र सारथियो टुमिङ पु३षोना मुभथी अधरथ तैयार था भवानी ० શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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