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________________ सुबोधिनी टीका सू. ११६ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् १०५ खाइमं साइमं पडिलाभिस्संति, पाडिहारिएणं पीठलगसेज्जासंफ थारएणं उवनिमंतिस्संति। तएणं से केसीकुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयासी अविआई चित्ता! जाणिस्सामो ॥ सू० ११६ ॥ छाया--ततः खलु स चित्रः सारथिः केशिन कुमारश्रमण मेवमवा. दीत-कि खलु भदन्त ! यु माकं प्रदेशिना राज्ञा कर्त्तव्यम् ? सन्ति खलु भदन्त ! श्वेतविकायां नगर्याम् अन्ये बहव ईश्वरतलवर-यावत्सार्थवाहप्रभृतयः, ये खलु देवानुपिय वन्दिष्यन्ति नमस्थिष्यन्ति यावत् पर्युपासिष्य न्ते, विपुलम् अशन पान खाद्य स्वाय प्रतिलम्भयिष्यन्ति, प्रतिहारिकेण पीठ. 'तरण से चित्ते सारही' इत्यादि। सूत्रार्थ-(तएण) इसके बाद (से चित्ते सारही केसि कुमारसमणं एव' वयासी) उस चित्र सारथिने केशिकुमारश्रमण से ऐसा कहा--(कि ण भंते ! न्तुभ पएसिणा रन्ना कायन्च) हे भदन्त ! आपको प्रदेशी राजा से क्या तात्पर्य है (सेय वियाए नयरीए अन्ने बहवे ईसरतलवर जाव सत्यवाहप्पभिईओ जे देवाणुप्पिय बंदिस्सति णम सिस्सति जाव पज्जुवासिस्सति, विउल असणं पणं खाइमं साइम पडिलाभिस्संति) श्वेतांविका नगरी में और भी बहुत से ईश्वर तलवर यावत् सार्थवाह आदि हैं जो आप देवानुमिय को वन्दना करेंगे, नमस्कार करेंगे यावत् पर्युपासना करेंगे एव विपुल, अशन से पान से खादिम से और स्वादिम से आप को प्रतिलाभित करेंगे। (पडिहारेण पीदफलगसेज्जासंथारएणं उवनिम तिस्संति) एवं समर्पणीय 'तए ण से चित्ते सारही' इत्यादि. सूत्रार्थ-(तए ण) त्या२ पछी (से चित्तो सारही केसि कुमारसमण एवं वयासी) ते यि साथिये शिभा२ श्रमाने सा प्रमाणु यु (किं ण भते । तुम्भ पएसिणा रन्ना कायन्च) GET ! मा५श्रीने प्रदेश २ion साथे | निस्मत छ १ (सेय वियाए नयरीए अन्ने बहवे ईसरतलवरजाव सत्थवा हप्पभिईओ जे ण देवाणुप्पिय' वादिसति णमसिस्सति जाव पज्जुवासिं सति विउल असण पाण खाइम साइम पडिलामिस्सति) श्वेतifest નગરીમાં બીજા ઘણુ ઈશ્વર, તલવર યાવત્ સાર્થવાહ વગેરે છે કે જે આપ દેવાનુપ્રિયને વંદન કરશે નમસ્કાર કરશે યાવત પર્યું પાસના કરશે. અને વિપુલ અશનથી, पानथी, माहीमथी भने स्वाभिधी मापश्रीन प्रतिमालित २२. (पडिहारेणं पीढफलगरोज्जासंथारएणं उवनिमंतिस्सति) भने समय पीठ ५८४ शय्या શ્રી રાજશ્રીય સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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