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________________ %3 सुबोधिनी टीका. सू. ११२ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् भदन्त ! नैग्रन्थ प्रवचनम्, प्रतीष्टमेतद् भदन्त ! नैर्ग्रन्य प्रवचनम् इष्टप्रतीष्टमेवद् भदन्त ! नैग्रन्थं प्रवचनम् यत् खलु यूयं वदथेति कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत-यथा खलु देवाणुप्रियाणाम् अन्तिको बहव उग्रा भोगा यावत् इभ्या इभ्यपुत्रास्त्यक्त्वा हिरण्य त्यत्तवा सुवर्णम् एवं धन धान्य बल वाहन कोश कोष्ठागारपुरम् अन्तःपुर', त्यक्त्वा विषय बनाता हूं. हे भदन्त ! मैं इस निग्रन्थ प्रवचन को स्वीकार करता हूं. हे भदन्त ! आप जैसा इस निम्रन्थ प्रवचन का प्रतिपादन करते हैं, वह वैसाही है. हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सन्देह रहित है। (इच्छियमेय भते! निग्गथे पावयणे, पडिच्छियमेय भंते निग्गंथे पाचयणे) हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन इष्ट है,हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन प्रतीष्टहै। (इच्छियपाडिच्छियमेय भते ! निग्गथे पावयणे) हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन इष्टप्रतीष्ट दोनोरूप है. (जं ण तुन्भे वदह, त्ति कटु वंदइ, नमसइ) जैसा कि आप कहते हैं इस प्रकार कहकर उसने उसको वन्दना की नमस्कार किया, (बदित्ता नम सित्ता एवं वयासी) वन्दना नमस्कार कर फिर उसने ऐसा कहा (जहाण देवाणुप्पियाण अंतिए बहवे उग्गा, भोगा जाव इब्मा इब्भपुत्ता चिच्चा हिरण्ण', चिच्चा सुवण्ण, एवं धण धन्न बल वाहण कोस कोट्ठागारं पुर अंते उर) आप देवानुपिय के पास जिस प्रकार अनेक उग्र भोग यावत् इभ्य પિતાની રુચિનો વિષય બની છું. હે ભદંતહં આ નિર્ચ પ્રવચનને સ્વીકારું છું. હે ભદંત ! આ નિગ્રંથ પ્રવચનનું આપ શ્રી જે પ્રમાણે પ્રતિપાદન કરી રહ્યા છે. અક્ષરશઃ યથાવત્ છે. હે ભદંત ! આ નિગ્રંથ પ્રવચન સત્ય છે, હે ભદંત ! આ निथ प्रयन सटेड २डित छ. (इच्छियमेयं भंते ! निग्गथे पावयणे, पडिच्छियमेय भते निग्गंथे पावयणे) हे महत! मा निथ प्रयन ष्ट छ, डे महत! म निथ प्रक्यन प्रतीष्ट छे. (इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! निग्गंथे पावमणे) हे महत! म निथ अवयन ४ट भने प्रतीष्ट मन्ने छ. (जं गं तुब्भे बदह, तिकटु वंदइ नमसइ) रे प्रमाणे भा५श्री ही २ छ। ते प्रमाणे ४ छे. साम डीने तो बहना तेम नमा२ ४ा. (बदित्ता नमंसित्ता एवं. वयासी) न तभ०४ नम२४.२ ४शन तो तमाश्रीन २ प्रमाणे धु-(जहाणं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहबे उग्गा, भोगा: जाच इन्भा इब्भपुत्ता चिच्चा हिरणं. चिच्चा सुवण्णं. एवं धणं धन्न बलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं पुरं अतेउर) साप हेवानुप्रियनी पासे रेभ अश्र, लोग यावत् एल्य भने ल्यपुत्री શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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