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________________ ७४ राजप्रश्नीयसूत्रे कुमारश्रमण त्रिकृत्वा आदक्षिण-प्रदक्षिण करोति, वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत्-श्रद्दधामि अलु भदन्त ! नेग्रन्थं प्रवचनम्, प्रत्येमि खलु भदन्त ! नै ग्रन्थं प्रवचनम्, रोचयामि खलु भदन्त ! नैर्ग्रन्थ प्रवचनम्, अभ्युत्तिष्ठे खलु भदन्त ! नर्ग्रन्थं प्रवचनम्, एवमेतद् भदन्त ! नैर्ग्रन्थं प्रवचनम्, तथैवैतद् भदन्त ! नैर्ग्रन्थं प्रवचनम्. अवितथमेतद् भदन्त ? नैर्ग्रन्थ प्रवचनम्, असन्दिग्धमेतद् भदन्त ! नैर्ग्रन्थ प्रवचनम्, इष्टमेतद् 'तएणं से चित्तें सारही इत्यादि। सूत्रार्थ-(तएणं) इसके बाद (से चित्ते सारही) वह चित्र सारथि (केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म) केशीकुमार श्रमण के पास धर्म को सुनकर और उसे हृदय में अवधृतकर (हट्ट जाव हियए) हर्षित हुआ संतुष्ट हुआ यावत् (उठाए उ8 इ) अपने आप उठा-(उद्वित्ता केसि कुमारसमण तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ) और उठकर उसने के शिकुमारश्रमण की तीन आदक्षिणप्रदक्षिणा की (वंदइ नमसइ) वन्दना की नमस्कार किया (वदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी) वंदना नमस्कार कर फिर वह इस प्रकार बोला-(सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं रोयामि णं भंते ! णिग्गथ' पावयण' अन्भुट्टेमि ण भते ! णिग्गंथ पावयणं एवमेय भते! निग्गय पावयण असदिद्धमेय भाते ! निग्गय पावयणं) हे भदन्त! मैं निर्ग्रन्थप्रवचन की श्रद्धा करता हूं। हे भदन्त ! में निर्ग्रन्थप्रवचन की प्रतीति करता हूं, हे भदन्त ! मैं निग्रन्थ प्रवचन को अपनी रुचि का 'त एण से चित्ते सारही' इत्यादि । सूत्रार्थ:-(त एण) त्या२ ५छी (से चित्ते सारही) ते यत्र साथि (केसिस्स कुमारसमणस्स अतिए धम्म सोच्चा निसम्म) शोभा२ श्रभानी पासेथी धम सामनीने अने तेन या घा२९५ ४शन (हट्ठजाव हियए) हर्षित थयो. संतुष्ट थयो यावत् (उठाए उट्टेइ) चातानी भेणे sal थय। (उहित्ता केसि कुमारसमण तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण' करेइ) मने से थने तेरे शीभार श्रभाशुनी त्रशु पा२ माइक्षिण प्रक्षिए। ४२. (व'दइ नमसइ) ना ४ नमः४१२ ध्या. (वदित्ता, नमसित्ता एवं वयासी) नारीन ते 20 प्रभारी वा साये।(सदहामिण भते! निग्गथ पावयण रोयामिण भते ! णिग्गथ पावयण अब्भुट्टोमि णं भंते ! निरगथं पाब्वयण एवमेयं भंते ! णिग्गंथं पावयणं असंदिद्धमेयं भंते ! निग्गंथं पावयणं) B RE ! दुनिय अवयनमा श्रद्धा भु છું. હે ભદત ! હું નિગ્રંથ પ્રવચનમાં પ્રતીતિ રાખું છું, હે ભદત હું નિગ્રંથ પ્રવચનને શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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