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________________ ६४ राजप्रश्नीयसूत्रे मूलम्त एणं से कंचुईपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स आगमणगहियविणिच्छए चित्त सारहि करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिया! अज सावथिए णयरीए इंदम हेइ वा जाव सागरमहेइ वा जे णं इमे बहवे जाव वदाविदएहिं निग्गच्छंति, एवं खलु भो देवाणुप्पिया ! पासावचिज केसी नामं कुमारसमणे जाइसंपन्ने जाव दुइजमाणे इहमागए जाव विहरइ । ते गं अज सावत्थीए नयरीए बहवे उग्गा जाव अप्पेगइया वंदण. वत्तियाए जाव महया महया वंदावंदएहिं णिग्गच्छति ॥सू०१०९॥ छाया-ततःखलु स कञ्चुकिपुरुषः केशिनः कुमार श्रमणस्य आग. मनगृहीतविनिश्चयः चित्रं सारथि करतलपरिगृहीतं यावत् वयित्वा एवमवादीतनो खलु देवानुप्रिय! अद्य श्राव त्यां नगर्याम् इन्द्रमह इति वा यावत्सा इन्द्रमह यावत् सागरमह है ? जो ये बहुत से उग्र, उग्रपुत्र आदि सबके सब अपने २ घर से निकल कर जा रहे है ? ॥१०८॥ 'तएण से कंचुईपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स' इत्यादि । सूत्रार्थ-(तए ण) इसके बाद उस कंचुको पुरुषने (केसिस्स कुमारसमण) केशी कुमारश्रमण के आगमन का गृहीत निश्चयवाला होकर चित्त सारहिं करयलपरिग्गहिय जाव वदावेत्ता एवं वयासो) चित्रसारथी से बडे विनय से दोनों हाथों की अंजलि बनाकर और उसे मस्तक पर घुमाकर एवं जयविजय शब्दों द्वारा उसे बधाई देकर इस प्रकार कहा-(णो खलु देवा. સાગરમહ છે? કે જેથી એ બધા ઉગ્ર, ઉગ્રપુત્ર વગેરે સૌ પોતપોતાના ઘરથી નીકળીને જઈ રહ્યા છે? ૧૦૮ "त एणं से कंचुईपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स" इत्यादि. सूत्रार्थ-(त एणं) त्या२ पछी ते युधी पुरुष (केसिस्स कुमारसमण) भार श्रमानी माननी पात भनमा पियारीने (चित्तं सारहिं करयल परिग्गहिय जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी) यित्र साथिनी सामे विनम्रतापूर्व બને હાથની અંજલિ બનાવીને અને તેને મસ્તક પર ફેરવીને અને વિજય शव तेभने धामणी न्यायाने २L प्रमाणे ४ -(णो खलु देवाणुप्पिया ! શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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