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________________ ५९४ ___ राजप्रश्नीयसूत्रे सूर्याभं विमानं सुगन्धगन्धितं गन्धवर्तिभूतं कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः हिरण्यवर्ष वर्षन्ति, सुवर्णवर्ष वर्षन्ति, रजतवर्ष वर्षन्ति, वज्रवर्षे वर्षन्ति, पुष्पवर्षवर्षन्ति, फलवर्ष वर्षन्ति माल्यवर्ष वर्षन्ति, गन्धवर्ष वर्षन्ति, चूर्णवर्षव वर्षन्ति आभरणवर्ष वर्षन्ति, अप्येकके देवाः हिरण्यविधिं भाजयन्ति, एवं सुवर्णविधिं भाजयन्ति, रत्नविधि० पुष्पविधि फलविधि० माल्यविधि० चूर्णविधि० वस्त्रविधिं गन्धविधि०. अप्येकके देवा आपरणांविधिं भाजयन्ति, अप्येकके गुरूधूय की प्रवरकुन्दरुष्क चीडानामक सुगंधित द्रव्यविशेष की, तुरुष्कलोबान की, इधर उधर फैलती हुई गंध से मनाहर किया (अप्पेगइया सूरियामं विमाणं सुगंधगंधियं, गंधवट्टिभूयं करेंति) तथा कितनेक देवोंने उस सूर्याभविमान की सौरभ से वासित्त होने के कारण गन्ध की गुटिका जैसा बनादिया (अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं, वासंति-सुवर्णवास वासंति) तथा कितनेक देवोंने घटित सुवर्ण की वरसा की. (रययवासं वासंति वइरवासं वासंति, पुष्फवासं वासंति, फलवासं वासंति मल्लवासं वासंति, गंधवासं वासंति चुण्णवासं वासंति, आभरणवासं वासंति) रजत की वरसा की वज की वरसा की, पुष्पों की वरसा की, फलोंकी वरसाकी, मालाओंकी वरसा की, गंधद्रव्यों की वरसा की, चूर्ण की वरसा की, आभरणों की वरसा की. (अप्पेगईया देवा हिरण्णविहिं भाएंति, एवं सुवण्णविहिं भाएंति, रयणविहिं भाएंति, पुष्फविहिं०, फलविहिं०, मल्लविहिं०, चुण्ण विहिं०, वत्थविहिं० गंधविहिं०) तथा कितनेक देवोंने हिरण्य विधि-हिरण्य विधि का विभाजन किया. कितनेक देवोंने गधियं, गंधवट्रिभूयं करेंति ) तम उदा देवाणे ते सूर्याभविमानने सौरम युत वा महल धनी गुटियु मनावी हाधु. ( अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वासंति सुवण्णवासं वासंति) तेम मा त्यां घाय। वरना सुशिनी वर्षा ४ मा हेवाये घसा सुवानी (मालनी ) वर्षा ४३री. (रययवासं वासति वइरवासं वासंति, पुष्फवासं वासंति, फलवासं वासंति मल्लवासं वासंति, गंधवासं वासंति, चुण्णवासं वासंति आभरणवासं वासंति ) २४त (यia) नी वर्षा કરી. વજની વર્ષા કરી. પુછપની વર્ષા કરી, માળાઓની વર્ષા કરી, ગંધદ્રવ્યોની वर्षा :श, यूर्जुनी वर्षा ४१. समशनी वर्षा ४री, (अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाएंति, एवं सुवण्णविहिं भाएंति, रयणविहिं माएंति, पुष्फविहिं० फलविहिं माल्लविहिं० चुण्णविहिं०, वत्थविहि, गंधविहिं०) तमन हेटसा हेवाय मीन वान यia અર્પવાની વિધિ કરી કેટલાક દેએ સુવર્ણ પ્રદાન કરવાની વિધિ સંપન્ન કરી, શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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