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________________ सुबोधिनी टीका. सू. ८७ दर्याभविमानस्य देवकृतसज्जीकरणादिवर्णनम् ५९३ सूर्याभं विमानम् उपचितचन्दनकलशं चन्दनघटसुकृततोरणप्रतिद्वारदेशभाग कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः सूर्याभं विमानम् आसक्तावसक्तविपुलवृत्तपलम्बितमाल्यदामकलापं कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः-सूर्याभं विमानं पञ्चवर्णसुरभिमुक्तपुष्पपुनओवचारकलितं कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः सूर्याम विमानं कालागुरुप्रवरकुन्दुरुष्कतुरुष्कधूपप्रसरद्गन्धोद्भूताभिरामं कुर्वन्ति, अग्येकके देवाः सरस रक्तचन्दन के हाथों में लगाकर कि जिन हाथों में पांचों अंगुलियां स्पष्ट उछरी हुई थी उसे चित्रित बना दिया. (अप्पेगइया देवा मूरियामं विमाणं उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति ) तथा कितनेक देवोंने उस सूर्याभविमान को गृहान्तचतुष्कों से चन्दन चर्चित कलशों से सुहावना बनाया. तथा वहिारों पर भी अच्छी तरह से चन्दन चर्चित कलशों को स्थापित किया ( अप्पेगइया देवा सूरिया विमाणं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलापं करेंति) तथा कितनेक देवोंने उस सूर्याभविमान को पुष्पमालाओं के ऐसे समूह से कि जो उसमें ऊपर नीचे लटकाया गया था युक्त किया अप्पेगइया देवा मुरियाभं विमाणं पंचवण्णसुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति ) तथा कितनेक देवोंने उस सूर्याभविमान को पांचवर्णवाले एवं सुगंधित पुष्पों के इधर उधर बिखरे हुइ समूह की रचनाविशेष से युक्त किया (अप्पेगड्या) देवा सूरियाभं विमाणं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवमघमघतगंधुद्धयामिरामं करेंति ) तथा कितनेक देवोंने उस सूर्याभविमान को कृष्णाजाये। स्पष्टपणे पाय छ तेस थापामाथी चित्रित मनाव्यु. ( अप्पेगइया देवा सूरियामं विमाणं उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति) તેમજ કેટલાક દેએ તે સૂર્યાભવિમાનના ચારે ચાર ખૂણા માં ચન્દનલિપ્તકળશ મૂકીને તેને સુશોભિત કર્યું તેમજદ્વારની બહાર પણ ચંદનચર્ચિત કળશે भूटीन तेनी शालामा मभिवृद्धि ४२१. (अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं आसत्तो. सत्तविउलवटेवग्धारियमल्लदामकलावं करेंति ) तेम०४ मा वामे ते सूर्यालविभानने ५०५माजासाना समूथी यथास्थाने शाशन माव्यु. ( अप्पेगइया देवा सूरियाभ विमाणं पंचवण्णसुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति ) तेमन 21 દેએ તે સૂર્યાભવિમાનને પાંચવર્ણવાળા તેમજ સુગંધિત પુપોને આમતેમ नाभीन सुशोलित यु'. (अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं कालागुरुपवरकुंदरुक्कतुरुक्कधूवमधमघतगंधुझ्याभिरामं करेंति ) तभ०४ ८९ हवामे ते सूर्यालविभानने કૃષ્ણાગુરધૂપની, પ્રવરકુંદરુષ્પનામક સુગંધિત દ્રવ્યવિશેષની, તુરુષ્ક–લબાનની यामे२ प्रसरती थी सुवासित मनाच्यु. (अप्पेगइया सूरियाभं विमाणं सुगंध શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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