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________________ सुबोधिनी टीका. सू.८४ सामानिकदेवकथनेन सूर्याभस्य तत्तत्कार्य करणम् ५६७ छाया-ततःखलु स सुर्याभो देवस्तेषां सामानिकपरिषदुपपन्नकानां देवानाम् अन्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्ट-यावत्-हृदयः शयनीयात् अभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थाय उपपातसभायाः पौरस्त्येन द्वारेण निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव हृदस्तत्रैव, उपागच्छति, उपागत्य हृदयः अनुप्रदक्षिणी कुर्वन् पौरस्त्येन तोरणेन अनुप्रविशति, अनुप्रविश्य पौरस्त्येन त्रिसोपानप्रतिरूपकेण प्रत्यवरोहति, प्रत्यवरुहय 'तएणं सूरियामे देवे' इत्यादि। सूत्रार्थ-(तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामाणियपरिसोववन्नागाणं देवाणं अंतिए एयमढे सोचा) इसके बाद वह सूर्याभदेव उन सामानिक परिषदुपपन्न देवों से इस प्रकार के अर्थ को सुनकर (निसम्म, हतुट्ठ जाव हियए सयणिजाओ अब्भुढेइ) और उसे हृदय में धारण कर बडा ही प्रसन्न एवं संतुष्टचित्त हुआ और शयनीय से उठा (अब्भुद्वित्ता उववायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ) और उठकर वह उषपात सभा के पौरस्त्यद्वार से-पूर्वदरवाजे से निकला (निग्गच्छित्ता जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ) निकल कर वहां गया जहां हूद था (उवागच्छित्ता हरयं अणुपयाहिणी करेमाणे २ पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसइ) वहां जाकर उसने हृद की बार बार प्रदक्षिणा की और फिर वह पूर्वतोरण से होकर उसमें प्रविष्ट हुआ (अणुपविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पचोरुहइ) प्रविष्ट होकर वह पूर्वदिग्वती विसोपानप्रतिरूप से होकर उसमें प्रवेश 'तएणं से सूरियाभे देवे' ! इत्यादि । सूत्रा-(तएणं से सूरियाभे देवे तेसिं सामाणियपरिसाववन्नगाणं देवाणं अंतिए एयमढे सोच्चा) त्या२ ५छी ते सूर्यास ते सामा४ि परिषg५५-न हे पांसे थी मा प्रमाणे पात सालणीने (निसम्म, हतुद जाव हियए सयणिज्जाओ अब्भुटेइ) અને તેને હદયમાં ધારણ કરીને ખૂબ જ પ્રસન્ન તેમજ સંતુષ્ટ ચિત્ત થયો અને शयनीय ५२थी अला . ( अब्भुद्वित्ता उववायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ) भने GA! थने ते ७५५ात समान। पौ२२त्यहारथी पूर्व दिशा तरइना-दारथी-ज्ये।. (निग्गच्छित्ता जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ) भने यो ६४ (धरे।) तयi गया. ( उवागच्छित्ता हरयंअणुपयाहिणी करेमाणे २ पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसइ) त्यो नत हनी वारपार प्रहक्षि। ४२॥ मने त्या२५छ। ते पूरी तर! त२३थी तभा प्रविष्ट थयो. ( अणुपविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ) प्रविष्ट ४२ ते हिश त२३नी निसोपान प्रति३५ ७५२ थ/न. तमा तया. (पञ्चोरुहिता जलावगाहं जलमज्जणं करेइ) तरीन तरी શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર: ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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